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कुवलयमाला-कथा इसके अनन्तर जिसका अन्त:करण भक्ति से भर गया है ऐसे इन्द्र ने उस चूहे को हाथ में लेकर कहा-'अहो मूषक! तू हम से पहले मोक्ष पद पावेगा ऐसा भगवान् ने कहा है। देवों! देखो, श्री जिनेश्वर के मार्ग का कैसा प्रभाव है? जिससे तिर्यञ्च भी दूसरे भव में मोक्ष पाते हैं।" इसके पश्चात् सौधर्म इन्द्र की ही तरह दूसरे वैमानिक इन्द्रों ने, असुरेन्द्रों ने और सैकड़ों राजाओं ने चूहे को राजकुमार की तरह एक हाथ से दूसरे हाथ में लेते हुए आलिङ्गन किया। स्नेह के कारण पराधीन हुई दृष्टि से उन्होंने यह कहकर अत्यन्त प्रशंसा की कि 'यह चूहा हम से भी श्रेष्ठ है, क्योंकि आगामी भव में ही इसे मोक्ष प्राप्त होगा। जिनेन्द्र का वचन कभी मिथ्या हो ही नहीं सकता।'
इसके बाद पद्मप्रभ देव ने खड़े होकर हाथ जोड़कर भगवान् से पूछा"प्रभो! हम पाँचों मित्र भव्य हैं या अभव्य हैं?"
भगवान्- तुम भव्य हो और सुलभबोधी हो। पद्मप्रभ- पूज्य! हम पाँचों कितने दिन में मोक्ष पावेंगे?
भगवान्- तुम पाँचों इस भव से चौथे भव में समस्त दुःखों के क्षय रूप मोक्ष-पद पाओगे।
पद्मप्रभ- स्वामिन् ! यहाँ से चय कर हम लोग कहाँ उत्पन्न होंगे?
भगवान्-"यहाँ से चयकर तुम वणिक्पुत्र होओगे, पद्मवर राजकुमारी होगा, पद्मसार राजकुमार होगा, पद्मचन्द्र विन्ध्य पर्वत पर सिंह होगा और पद्मकेशर भी राजपुत्र होगा।" इतना कहकर श्री धर्मनाथ भगवान् मौन रह गये। देवता समवसरण को संहार कर अपने-अपने स्थान को गये और भगवान् भी भव्य-जन रूपी कुमुदों को प्रफुल्लित करने के लिए चन्द्रमा की तरह विहार करने में प्रवृत्त हुए।
इसके बाद वे पाँचों देव अपने विमान में पहुँचकर आपस में बातचीत करने लगे। एक ने दूसरे के सामने देखकर कहा-"स्वयं श्री भगवान् ने जो कुछ कहा है वह तो तुमने सुना ही है। अब सम्यक्त्व की प्राप्ति के लिए क्या करना चाहिए ?" दूसरे ने कुछ सोच-विचार कर कहा- "हम लोगों को अत्यन्त कठिन कठिन कार्य करना है क्योंकि एक वणिक्पुत्र होगा, एक
तृतीय प्रस्ताव