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कुवलयमाला-कथा का त्याग कर मेरे वचनों को तथा संसार के दुष्ट स्वरूप को विचारता हुआ नवकार मन्त्र के ध्यान में लीन हो जायगा। उसे ऐसी दशा में देख कर चूहियाँ उसके पास चावल और कोदों आदि भोजन डालेंगी। उसे देखकर चूहा विचार करेगा-'अनन्त भवों में भ्रमण करते-करते इस जीव ने मेरु पर्वत से अधिक आहार और समुद्र से भी अधिक जल ग्रहण किया है। जब इतने से भी यह जीव तृप्त नहीं हुआ तो इतने से दाने खाने से इसे कैसे तृप्ति होगी?' ऐसा विचार कर यह चूहा उन्हें खायगा नहीं और चूहियों के ऊपर जरा भी दृष्टि न डालेगा। यह देखकर चूहियाँ सोचेंगी अपना स्वामी किसी कारण से नाराज हो गया मालूम होता है। इसे हम राजी करें। चूहियाँ ऐसा विचार कर उसके पास जायेंगी। उनमें से कितनेक उसका मस्तक खुजायेगी और कितनीक शरीर पर हाथ फेरेंगी। चूहियों द्वारा चारों ओर से सेवित चूहा सोचेगा ये स्त्रियाँ सदा नरक का मार्ग हैं, तथा संसार के दुःखों की जड़ हैं। ऐसा सोचकर वह स्थिर समाधि में मग्न रहेगा। जैसे आँधी से सुमेरु का शिखर जरा भी नहीं डगमगाता, उसी प्रकार चूहियों से उसका मन भी नहीं डिगेगा। जब चूहियाँ निराश हो जायेंगी तो 'हमारा प्रयत्न वज्र पर नाखून के द्वारा लकीर करने के समान व्यर्थ होता जा रहा है' ऐसा विचार करके उसे छोड़ देंगी। इसके पश्चात् तीसरे दिन भूख से कमजोर कूँख वाला चूहा मृत्यु पाकर, मिथिला नगरी में, मिथिल राजा की चित्रा नामकी पटरानी के उदर रूपी सरोवर में राजहंस की लीला को अलंकृत करेगा- गर्भ में आवेगा। उसके गर्भ में आते ही उसकी माता का मन सब जीवों पर मैत्री की वासना से सुवासित हो जायगा। समय बिताने पर जब उसका जन्म होगा तो राजा मित्रकुमार नाम रखेगा। कुमार कौतूहल पूर्वक कुत्ता, बन्दर, सांबर, हरिण और चूहा आदि जानवरों को पीजरों में रख कर उनके साथ क्रीड़ा करता हुआ आठ वर्ष का होगा। किसी समय वर्षा काल आवेगी। मेघ-मालाओं से समस्त आकाश मण्डल ढंक जायगा। वह विरही जनों के लिए काल के सदृश होगा। उस समय जल को पाकर नदियाँ किनारे के वृक्षों को उखाड़ फेकेंगी। ठीक है-'नीच आदमी राजा की विभूति पाकर किसे दु:ख नहीं देता? सभी को देता है।' उस समय बादल ज्यों-ज्यों पृथ्वी पर पानी की वर्षा करते हैं, स्त्रियाँ त्यों-त्यों कामदेव से पीडित होकर वन-उद्यान की इच्छा करती हैं। अंधेरी रात में, आकाश में उड़ते हुए जुगनू (खद्योत)
तृतीय प्रस्ताव