________________
[112]
कुवलयमाला-कथा कमल तो उन मुखों के दास हो गये थे। उस नगर के चारों ओर आकाश को चूमने वाला-बहुत ऊँचा परकोटा था। उसकी परछाई खाई के पानी में पड़ती थी। इससे वह ऐसा जान पड़ता था कि पाताल लोक की नगरी को जीतने के लिए इच्छा करता हो। ऐसा मालूम होता था कि, 'इस नगर ने मेरे घर में से रत्न ले लिए हैं' ऐसा सोचकर, क्रोध उत्पन्न होने से खाई के बहाने समुद्र ने ही आकर इस नगर को घेर लिया है। 'मम' इन दो अक्षरों का उद्धरण पहले तो वहाँ के लोग किया करते थे, परन्तु याचकों को देखकर वे अक्षर उन्हें दे दिये, जिससे वे उनके लिए भूले से ही हो गये थे। अर्थात् वहाँ के लोग बड़े दानवीर थे। तारा रानी का चित्त उस नगर में आकर 'अब मुझे क्या करना चाहिए' यह विचार करते-करते मूढ गया। वह ऐसा विचार करती हुई यूथ (संघ) से बिछुड़ी हुई हरिणी की तरह चच्चरमहेश्वर के मण्डप में घुसी। उसी समय गोचरी के लिए निकली हुई दो साध्वियाँ उसे दिखाई पड़ीं। उन्हें देख कर उसने सोचा - 'अरे! ये तो महानुभाव और क्रियाओं में तत्पर श्रेष्ठ साध्वियाँ मालूम होती हैं।' उसने ऐसा विचार कर खड़े होकर उन्हें वन्दना की। साध्वियों ने उसे धर्म लाभ देकर पूछा-"तुम कहाँ से आई हो?" उसने कहा"विन्ध्यावास नगर से आई हूँ।" उसका रूप, लावण्य, लक्षण देखकर तथा गद्गद कण्ठ से निकली हुई बोली सुनकर साध्वियों को उस पर बड़ी दया आई। कहा भी है
महतामापदं वीक्ष्य, मोदन्ते नीचचेतसः।
महाशया विषीदन्ति, परं प्रत्युत सर्वदा।। अर्थात् बड़े आदमियों की विपत्ति देख कर नीच हृदय वाले लोग हमेशा खुश होते हैं, परन्तु उदार विचार वाले उलटे दुःखी होते हैं।
__ साध्वियों ने कहा-"भद्रे! यदि इस नगर में कोई तुम्हारी जान-पहचान का न हो तो हमारे साथ चलो।" रानी 'बड़ी कृपा' कहकर उसके साथ उपाश्रय में आई। उसने वहाँ प्रवर्तिनी की बड़ी भक्ति से वन्दना की। प्रवर्तिनी ने उसे देखकर विचार किया- 'इसका चेहरा बहुत सुन्दर है पर मालूम होता है कि इसकी बड़ी दुर्दशा हो गई है। तो भी आकृति से जान पड़ता है कि यह कोई राजवंश की है या किसी राजा की रानी है और इसके साथ अत्यन्त सुन्दर
तृतीय प्रस्ताव