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कुवलयमाला-कथा
[111] जिसके तमाम अङ्ग में रोमाञ्च हो आये थे ऐसा वह चूहा पृथ्वी पर माथा टेक कर अपनी भाषा में बोलने लगा। यह देखकर इन्द्र ने भगवान् से कहा"भगवन् ! सबसे अधम और तुच्छ जाति वाला और जंगल में रहने वाला यह चूहा हम सबसे पहले मोक्ष पावेगा, यह सुनकर मेरे मनमें बड़ा ही आश्चर्य पैदा हुआ।" यह सुनकर भगवान् स्वयं बोले -"इन्द्र! सुनो विन्ध्या नामक पर्वत की तलहटी में विन्ध्यावास नाम का एक बड़ा गाँव है। उसमें महेन्द्र नामका राजा राज्य करता था। उसकी बड़े-बड़े नेत्रों वाली तारा नाम की रानी थी। उसकी कोख से उत्पन्न हुआ ताराचन्द्र नामका लड़का था। जब वह आठ वर्ष का हुआ तो अति वैर के कारण दोषों को देखते-देखते कोशल राजा ने एक दम हमला करके सारा विन्ध्यावास गाँव छिन्न-भिन्न कर दिया। महेन्द्र राजा उसके साथ युद्ध करता हुआ शत्रु के हाथ से मारा गया। इसलिए 'बिना सेनापति की सेना भी मरी हुई समझना चाहिए' इस न्याय के अनुसार समस्त सेना भाग खड़ी हुई। उनमें रानी तारा भी अपने पुत्र ताराचन्द्र को अँगुली से पकड़कर अपने गुप्त सेवकों के साथ भागकर अनुक्रम से भृगुकच्छ (भरोच)नगर में आई। वह नगर महादेव की तरह दुर्गान्वित, स्त्रियों के कुचों के तट के समान विहार से शोभित, सरोवर की तरह कमलालय,३ गंधी की दुकान की भाँति चन्द्रसहित और स्वर्णमण्डल की तरह या वाटिका (बावड़ी) स्थान की नाई सद्वषों५ का आश्रय रूप था। इसी प्रकार सदा आरम्भवाला,६ सदा शिववाला और लाट देश की लक्ष्मी के मस्तक के तिलक के समान था। उस नगर की सुन्दर भौंहों वाली स्त्रियों के मुख-मुख के ही समान थे - अन्य किसी से उनकी उपमा नहीं दी जा सकती क्योंकि पूर्णमासी का चन्द्रमा और १. महादेव दुर्गासहित और नगर किले सहित। २. कुचतट विचित्र-विचित्र हारों से और नगर महलों से। ३. सरोवर कमलों का और नगर लक्ष्मी का आलय = स्थान। ४. गांधी की दुकान कपूर सहित और नगर में समृद्ध। ५. स्वर्ग अच्छे इन्द्र का आश्रय, उद्यान अच्छे वृक्ष नामक वृक्षों का और नगर धर्मात्माओं
का आश्रय। ६. सदा नये-नये कार्य आरम्भ होते थे। ७. कभी उपद्रव न होते थे।
तृतीय प्रस्ताव