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________________ [100] कुवलयमाला-कथा आवश्यकता से अधिक वर्षा नहीं होती। (9) वर्षा का बिलकुल अभाव नहीं होता। (10) दुर्भिक्ष नहीं पड़ता (11) स्वराज्य या परराज्य से भय नहीं होता। ये ग्यारह अतिशय ज्ञानावरणीय आदि चार कर्मों के क्षय होने से प्रगट होते हैं। (1) आकाश में, धर्म का प्रकाश करने वाला चक्र होता है। (2) आकाश में चामर होते हैं। (3) आकाश में पादपीठ सहित उज्ज्वल और निर्मल स्फटिकमणि का सिंहासन होता है। (4) आकाश में तीन छत्र होते हैं। (5) आकाश में रत्नमय ध्वजा होती है। (6) पैर धरने के लिए नवीन सुवर्ण कमल होते हैं। (7) समवशरण में रत्न का, सोने का और चाँदी का, इस प्रकार तीन प्राकार (घेरा) होते हैं, उस मार्ग के काटे अधोमुख (8) तीर्थंकरों के चारों दिशाओं में चार मुख और शरीर होते हैं। (9) अशोक वृक्ष होता है। (10) भगवान् जिस मार्ग से गमन करते हैं, उस मार्ग के काँटो अधोमुख(नीचे की ओर नोक वाले) हो जाते हैं। (11) सभी वृक्ष नीचे झुक जाते हैं। (12) पृथ्वी और आकाश में चारों ओर व्याप्त हो जाने वाला दुन्दुभि का शब्द होता है। (13) अनुकूल और आनन्ददायक हवा चलती है। (14)पक्षिगण प्रभु की प्रदक्षिणा देकर गमन करते हैं। (15) सुगन्ध युक्त जल की वर्षा होती है। (16) विचित्र रंग वाले फूलों की घुटनों तक वर्षा होती है। (17) बाल, रोम, दाढ़ी, मूंछ तथा हाथ और पैरों के नाखून नहीं बढ़ते। (18) भुवनपति आदि चारों निकाय कम से कम एक करोड़ देव भगवान् के पास सदा बने रहते हैं। (19) वसन्त आदि छहों ऋतुएँ सर्वदा फूल-फलों सहित होती है तथा रूप, रस, गन्ध, स्पर्श और शब्द इन इन्द्रियों के विषयों में सुन्दरता प्रगट हो जाती है और असुन्दरता नष्ट हो जाती है, अतएव वे सब को अनुकूल हो जाते हौं। इन अतिशयों में से कहीं-कहीं कोई दूसरे प्रकार के हैं। उन्हें मतान्तर समझना चाहिए इन उन्नीस अतिशयों में, जन्म के चार और कर्मों (चार घातिया कर्मों) के क्षय से होने वाले ग्यारह अतिशय जोड़ देने से चौतीस(34) होते हैं। ___ भगवान् की वाणी के पैंतीस अतिशय हैं। वे इस प्रकार हैं-(1) संस्कारवत्त्व -संस्कृत के लक्षण से युक्तता (2) औदात्य-ऊँची वृत्ति होना (3) उपचार परीतता गँवारु या ग्रामीण शब्द न होना (4) मेघगम्भीरघोषत्व-मेघ की गर्जना की तरह गम्भीर वचन होना (5) प्रतिनादविधायिता- प्रतिध्वनि-गूंजहोना (6) दाक्षिणत्व - सरल भाषा का होना (7) उपनीतरागत्व-ग्राम-राग तृतीय प्रस्ताव विनय पर दृष्टान्त
SR No.022701
Book TitleKuvalaymala Katha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar, Narayan Shastri
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2013
Total Pages234
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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