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कुवलयमाला-कथा
[91] महाव्रतों को अपनी पेट-भराई का साधन बना लेते हैं, किन्तु विवेकी पुरुषों को चाहिए कि वे महाव्रतों को आजीविका साधन न बनावें। रक्षिका ने जैसे पाँचों दानों की रक्षा की, उसी प्रकार साधुओं को पाँचों महाव्रतों की रक्षा करनी चाहिए। जिस प्रकार रोहिणी बहू ने ससुर के दिये हुए दानों की वृद्धि की, उस प्रकार बुद्धिमान् मनुष्य को चाहिए कि वह भी पाँचों महाव्रतों की वृद्धि करता रहे।
॥ इति व्रतदृष्टान्तः समाप्तः।।
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व्रतदृष्टान्त
तृतीय प्रस्ताव