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________________ विनय गुरु महाराज फिर बोले-“हे शिष्यों! विनय जैन शासन की जड़ है। इसलिए साधुओं को विनयी बनना चाहिए। जो विनयहीन है, उसके धर्म कहाँ से हो सकता है? और तप भी कहाँ से हो सकता है? विनयवान् को लक्ष्मी मिलती है, यश मिलता है और अविनीत का मनोरथ कभी पूर्ण नहीं हो सकता। पुरुष भले ही गुणी हो, पर यदि वह विनय-हीन है तो उसे श्रेष्ठ लक्ष्मी कभी प्राप्त नहीं हो सकती। क्योंकि घड़ा भी जब थोड़ा नम्र होता है - झुकता है तभी पानी से भर सकता है। अपराध रूपी अन्धकार को नष्ट करने के लिये विनय सूरज के समान है और स्वर्ग तथा मोक्ष की प्राप्ति का कारण है। कुलीन आदमी को चाहिए कि वह गुरुजनों का, जो गुण में बड़े हों उनका और बालक तपस्वी का भी विनय करे। जैसे संसार के सब तेजस्वी पदार्थों में सूर्य प्रशस्त है, वैसे समस्त गुणों में विनय गुण प्रशस्त है उसके उदित होते ही कर्म रूपी समस्त विनय से सर्व सम्पत्तियाँ प्राप्त होती हैं और तो क्या? केवलज्ञान की प्राप्ति भी विनयवान् को ही हो सकती है। विनय पर दृष्टान्त जम्बूद्वीप में भरतक्षेत्र में, पृथ्वी पर एक मनोहर और कल्याणकारिणी क्षमा नाम की नगरी है। कुबेर के घरों की तरह ऊँचे-ऊँचे घरों वाली इस नगरी के आगे इन्द्र की नगरी अमरावती भी तुच्छ हो गयी जान पड़ती है। उस नगरी के उद्यान के सामने इन्द्र के नन्दन कानन की शोभा भी अपूर्ण प्रतीत होती है। इसके सरोवरों के समक्ष पम्पा आदि सब सरोवर मानो अभिमान रहित हो गये हैं। तृतीय प्रस्ताव विनय पर दृष्टान्त
SR No.022701
Book TitleKuvalaymala Katha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar, Narayan Shastri
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2013
Total Pages234
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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