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________________ [88] कुवलयमाला-कथा में जाग उठा। उस समय पहले धर्मध्यान करके वह गृहचिन्ता करने लगा'तरह-तरह की वस्तुओं से भरे हुए घर का संचालक यद्यपि पुरुष है, तथापि उसका निर्वाह स्त्रियों से ही होता है। पुत्र पौत्र(पोते) बहू और नौकर चाकरों से भले ही घर भरा हो, परन्तु पत्नी रहित घर गृहस्थ को सूना ही जान पड़ता है। जो स्त्री अपने पति के जीम चुकने पर जीमती है, सोने के बाद सोती है, और जागने से पहले ही जाग उठती है, वह गृहिणी, गृहिणी नहीं साक्षात् लक्ष्मी है। जो घर के समस्त मनुष्यों और पशुओं की सार सँभाल रखती है, सब की योग्यता है वह गृहिणी के बहाने लक्ष्मी ही है। तो, इन चारों बहुओं में से हमारे घर का बोझ उठा सके, ऐसी कौन बहू है? इस बात का निर्णय करना उचित है।' इस प्रकार विचार करके प्रात:काल होते ही धन सेठ उठे और प्रात:कालीन क्रियाएं कीं। फिर भोजन बनाने की विधि में निपुण रसोइयों से बहुत सी भोजन-सामग्री तैयार कराई। उसने चारों बहुओं के पिताओं (अपने समाधियों) को तथा नगरवासियों को निमन्त्रित करके आदर के साथ सबको भोजन कराया, भोजन हो चुकने पर सब सम्बन्धियों को आसन पर बिठलाया और पान-सुपारी, फूलमाला, वस्त्र चन्दनादि से उनका सत्कार किया। इसके अनन्तर उन सब के सामने बड़ी बहू उज्झिका को बुलाया और पाँच धान के अखण्ड दाने देकर कहा- "ये दानें मैं जब माँगू- तब दे देना" धान के दाने लेकर उज्झिका ने एकान्त में विचार किया-'मालूम होता है बुढ़ापे के कारण ससुर सठिया गया है। उसने पहले तो इतना बड़ा उत्सव किया, और उसी में मुझे बुलाकर पाँच चावल के दाने पकड़ा दिये। इन दानों को सम्हाल कर रख कर क्या करना है? जब वह माँगेगा, घर में से निकाल दूसरे पाँच दाने दे दूंगी।' यह सोचकर उसने वे दानें फैंक दिये। इधर धन सेठ ने दूसरी बहू को बुलाकर पाँच दाने उसे भी दिये। उन्हें लेकर वह (भक्षिका) एकान्त में सोचने लगी-'किसी कारण से ससुर की अक्ल मारी गयी है, क्योंकि उसने बेमौके ही इतना धन वृथा उड़ा दिया और सबके सामने बुलाकर मुझे ये पाँच दानें दिये हैं। लेकिन श्वसुर के दिये हुए इन दानों को फैंके भी कैसे?' ऐसा सोचकर उसने धान के छिलके उतारे और फौरन ही मुँह में रख लिये- खा गयी। धन सेठ ने तीसरी बहू को भी बुलाया और उसे भी वही पाँच दानें दे दिये उसने भी एकान्त में जाकर सोचा-'मैं समझती हूँ- शायद इन दानों से कोई विशेष कार्य होगा। अतः किसी तृतीय प्रस्ताव व्रतदृष्टान्त
SR No.022701
Book TitleKuvalaymala Katha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar, Narayan Shastri
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2013
Total Pages234
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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