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लक्ष्मण शत्रुदमन के पास पहुँचे एवं एक की जगह पाँच शक्तिप्रहार सहन करते हुए जितपद्मा के पास विवाह का प्रस्ताव रखा।230 उधर जब जितपद्मा ने लक्ष्मण को देखा तब वह भी कामातुर हो गई ।
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शत्रुदमन के पाँचों प्रहारों को लक्ष्मण ने सहन किया तब शत्रुदमन ने जितपद्मा से विवाह की आज्ञा दी। उधर जितपद्मा ने शीघ्र ही वरमाला लक्ष्मण के गले में डाल दी। 232 लक्ष्मण ने कहा मेरे भाई एवं भाभी को सूचना देनी आवश्यक है । तब शत्रुदमन ने उन्हें घर लाकर उनकी पूजा की। अब लक्ष्मण बोले कि पुन: लौटते समय में तुम्हारी पुत्री को विवाह कर ले जाऊँगा। 234 उस रात्रि के शेष काल में उन्होंने आगे प्रस्थान किया ।
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(ड़) राम द्वारा मुनियों की उपसर्ग से रक्षा, धर्मोपदेश, दंडकारण्य निवास :- राम वन में विचरण करते हुए वंशशैल पर्वत के निकट वंशस्थल नगर में आए जहाँ-वहाँ के राजा समेत - सभी भयग्रस्त थे। पूछने पर ज्ञात हुआ कि इस पर्वत पर रात्रि को होने वाली भयंकर ध्वनि के कारण सभी भयभीत हैं। 235 निवारणार्थ राम उस पर्वत पर चढ़े जहाँ उन्होंने कायोत्सर्गीमुनियों को देखा। सीता, लक्ष्मण व राम ने उनका वंदन किया। तत्पश्चात् राम ने वीणा बजाई, लक्ष्मण ने गीत गाया तथा सीता ने सुन्दर नृत्य किया । 236 रात्रि को अनलप्रभ देव ने आकर जब उपद्रव कर मुनियों को परेशान किया तब राम व लक्ष्मण उस देव को मारने के लिए उद्यत हुए। 237 राम व लक्ष्मण के पराक्रम को देख वह अपने स्थान पर चला गया एवं दोनों मुनियों को कैवल्य ज्ञान की प्राप्ति हुई। 238 राम द्वारा देवों के उपसर्ग का कारण पूछने पर कुलभूषण महर्षि ने सबके पूर्वभव का वृत्तांत कहा व उपसर्ग का कारण बताया। 239 मुनि ने सबको देशना दी तथा उनके पूर्वकर्मों के क्षय हो जाने की संपूर्ण जानकारी दी। तब वंशस्थल के राजा सुरप्रभ ने आकर राम को प्रणाम किया एवं पूजा की। 240 राम की आज्ञा से सुरप्रभ ने उस पर्वत पर जिन चैत्यों का निर्माण करवाया। तभी से उस पर्वत का नाम रामनगरी हो गया। 241
सुरप्रभ की आज्ञा लेकर राम व सीता वहाँ से रवाना हुए। निर्जन जंगलों में विचरण करते हुए उन्होंने अतिभयंकर दंडकारण्य में निर्भय होकर प्रवेश किया। 242 वहाँ भारी पर्वतों की एक गुफा में राम ने अपना आश्रम बनाया तथा रहने लगे । 'विधाय तत्र चाऽऽवासं महागिरीगुहागृहे ।
काकुत्स्थः सुस्थितस्तस्थो स्वकीय इव वेश्मनि ॥' 243
(७) रावण द्वारा सीता का अपहरण :
(क) राम का चारण मुनियों को आहारदान एवं जटायु प्रसंग : दंडकारण में रहते हुए राम ने एक बार आकाशगमन करते हुए त्रिगुप्त एवं सुगुप्त नामक दो मुनियों को देखकर उनका वंदन किया। दो माह के उपवासी उन मुनियों को सीता ने योग्य अन्नपान से पारणा करवाई एवं देवों ने रत्न एवं सुगंधित जल की वर्षा की।
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