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इन्द्राणी भी उसी समय वनमाला को खोजते हुए उस उद्यान में पहुँच गए। महीधर ने लक्ष्मण से युद्ध प्रारंभ कर दिया। परंतु लक्ष्मण द्वारा धनुप की टंकार मात्र से वह डर गया। 14 लक्ष्मण को पहचानते ही उसने राम को प्रणाम कर पुत्री वनमाला को लक्ष्मण को सौंप दी। 215 महीधर राम-लक्ष्मण व सीता को अपने घर ले गया। जहाँ वे काफी समय तक रहे।
(च) अतिवीर्य प्रकरण : महिधर को अतिवीर्य के दृत ने आकर समाचार दिया कि भरत से युद्ध करने के लिए आपको अतिवीर्य ने याद किया है। 26 लक्ष्मण के कारण पूछने पर दूत ने कहा, अतिवीर्य भरत को अपने अधीन चाहते हैं। 27 महिधर ने दूत को बिदा किया एवं राम से कहा कि मैं जाकर अतिवीर्य को ससैन्य नष्ट करूँगा। राम बोले- "तुम नहीं, मैं ससैन्य तुम्हारे पुत्र सहित जाता हूँ।''218 तब सेना सहित राम, लक्ष्मण व सीता नंद्यावर्त नगर के बगीचे में ठहरे। 219 वहाँ क्षेत्र देवता द्वारा राम, लक्ष्मण व समस्त सेना को स्त्री सैन्य में बदल दिया गया। 220 इधर अतिवीर्य ने आज्ञा दी कि "दासियों की तरह इन स्त्रियों को पकड़ लो।" 221
भयंकर युद्ध हुआ। लक्ष्मण ने अतिवीर्य को पकड़ लिया। दयालु सीता ने उसे छुड़वाया एवं लक्ष्मण ने उसे भरत की सेवा करना स्वीकार करवाया। 222 जब राम का सैन्य पुनः पुरुषवेशधारी बन गया तब अतिवीर्य ने राम को पहचाना एवं स्वयं दीक्षा ग्रहण कर पुत्र विजयरथ को राज्य दिया। 223 अतिवीर्य ने दीक्षा लेने से पूर्व अपनी पुत्री रतिमाला लक्ष्मण को सौंप दी। 224 विजयरथ भरत की सेवार्थ अयोध्या गया एवं अपनी छोटी बहन रतिमाला को भरत को सौंपा। 225 |
महिधर से बिदा हो राम, लक्ष्मण व सीता के चलने पर वनमाला ने साथ चलने हेतु लक्ष्मण से विवेदन किया परंतु लक्ष्मण ने उन्हें समझाया किहे प्रिया ! राम को इच्छित स्थान पर ठहराकर मैं पुन: तुम्हारे पास लौटूंगा। यह मैं शपथ पूर्वक कहता हूँ। 226 रात्रि के शेष भाग में राम-लक्ष्मण व सीता ने वहाँ से प्रस्थान किया। अनेक वनों को पार करते हुए वे क्षेमांजलि नगरी के समीप आए। 27
(छ) जितपद्मा प्रसंग : क्षेमांजलि नगरी के बाहर राम ने एक उद्यान में लक्ष्मण व सीता के साथ फलाहार किया। राम की आज्ञा से जब लक्ष्मण ने नगर में प्रवेश किया तब एक घोषणा सुनाई दी, जो इस प्रकार थी- "शक्तिप्रहारं सहतेयोऽमुष्य पृथ्वीपतेः।" तस्मै परिणयनाय ददात्येष स्वकन्यकाम्। 228 लक्ष्मण को ज्ञात हुआ कि शत्रुदमन व कनकादेवी की पुत्री जितपद्या के विवाह हेतु यह उद्घोषणा रोज होती है परंतु शक्ति प्रहार को सहन करने वाला कोई व्यक्ति आता नहीं है। 229
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