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मेरा अग्निहोत्र अपवित्र कर दिया। 199 यह सुन लक्ष्मण ने उसे पकड़कर
आकाश में तीव्रता से घुमाया एवं राम के कहने पर पुनः पृथ्वी पर ला पटका। 20 फिर वे तीनों वहाँ से तुरंत रवाना हो गए।
(घ) गोकर्ण यक्ष द्वारा रामपुरी निर्माण, कपिल का जैन धर्म स्वीकारना : सभ्राता एवं सपत्नी राम महावन में आ पहुँचे तब वर्षा काल आ गया। राम ने आदेश दिया कि वृक्षों तले ही हम वर्षाकाल व्यतीत करेंगे। तभी वृक्षाधिपति दूभकर्ण ने अपने स्वामी गोकर्ण के पास जाकर राम-लक्ष्मणादि के वृक्ष तले निवास करने का वृत्तांत कहा। 201 गोकर्ण बोला- राम व लक्ष्मण आठवें बलभद्र एवं वासुदेव हैं तथा पूजने योग्य हैं। 202 गोकर्ण ने राम, लक्ष्मण व सीता के सुखपूर्वक निवासार्थ उस रात को नौ योजन विस्तारयुक्त, बारह योजन लंबी, ऊँचे किले व प्रासादों वाली, रामपुरी नामक भव्य नगरी की रचना कर डाली 103 प्रातःकाल गोकर्ण ने आकर निवेदन किया "हे स्वामी, आप मेरे अतिथि हो। मैंने आपके लिए यह नगर रचा है। 24 अब एक दिन राम के वहाँ रहते हुए कपिल ब्राह्मण वहाँ आया। उस अनोखी नगरी को देखकर यक्षिणी से संपूर्णवृत्त जाना। कपिल ने राम के चरणों में जाने का निश्चय किया। 206 नगरी में प्रवेशार्थ उसने चैत्य में वंदन कर श्रावक बन साधुओं से धर्मोपदेश सुन, पत्नी को श्राविका बना, दोनों ने रामपुरी में प्रवेश किया।7 धनयाचनार्थ जब वह राम, लक्ष्मण व सीता के समीप पहुँचा तो उन्हें देखकर डर गया। याचक कपिल व पत्नी सुशर्मा ने उनके घर आने व स्वयं द्वारा अपराध करने का वृत्तांत उनसे निवेदित किया। राम ने उन्हें क्षमा कर द्रव्यादि देकर बिदा किया। कपिल ने फिर नंदावतरु आयार्च से संयम ग्रहण किया। 2081"
वर्षाकाल व्यतीत हो गया था। राम ने आगे जाने का प्रस्ताव रखा, तभी गोकर्ण यक्ष ने आकर सेवा में त्रुटि हेतु क्षमा मांगते हुए स्वयम्प्रभ नामक हार राम को दिया। लक्ष्मण व सीता को भी गोकर्ण ने क्रमशः दिव्य रत्नयुक्त दो कुंडल एवं चूडामणि व वीणा दी। 209 राम ने उस यक्ष को सम्मान पूर्वक बिदा कर अपनी यात्रा को आगे बढ़ाया।
(ङ) वनमाला-लक्ष्मण विवाह प्रसंग : वर्षाकाल के पश्चात् वनवासी राम विजयपुर नगरी पहुँचे। एक उद्यान में वृक्षों तले उन्होंने निवास किया। वहाँ महीधर राजा व उसकी रानी इन्द्राणी की पुत्री वनमाला ने बचपन से ही लक्ष्मण को अपना पति चुन लिया था। 210 वनमाला के पिता ने उसे वृषभ पुत्र सुरेन्द्ररुप को दे दिया था जिससे दुःखी वनमाला उसी उद्यान में आई एवं अगले जन्म में लक्ष्मण मेरा पति हो'' यह कह आत्महत्या करने लगी। ॥ तभी आत्महत्या को उद्यत उस वनमाला को लक्ष्मण ने आकर बचा लिया। बोले- मैं ही लक्ष्मण हूँ। 212 प्रातः राम व सीता को लक्ष्मण ने वनमाला की जानकारी दी लब वनमाला ने राम व सीता को प्रणाम किया। 213 महीधर व
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