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पूर्ण संयमी, जितेन्द्रीय अखंड ब्रह्मचारी निर्भय, सर्वधर्म समभावी. सत्योपासक, धर्मप्रचारक, राजनीतिज्ञ, गुरुभक्त, भक्तवत्सल, मातृभक्त एवं सच्चे देशोद्धारक थे। उनकी प्रशस्ति में डॉ. पीटर्सन लिखते हैं "दुनिया के किसी भी पदार्थ पर उनका तिलमात्र भी मोह नहीं था । उनके प्रत्येक ग्रंथ में विद्वता की झलक, ज्ञानज्योति का प्रकाश, राजकार्य में औचित्य, अहिंसा प्रचार में दीर्घ दृष्टि, योग में स्वानुभव का आदर्श, प्रचार कार्य में व्यवस्था, उपदेश में प्रभाव. वाणी में आकर्षण, स्तुतियों में गांभीर्य, छन्दों में बल, अलंकारों में चमत्कार, भविष्यवाणी में यथार्थता एवं उनके संपूर्ण जीवन में कलिकाल सर्वज्ञता, झलकती है। " हेमचंद्र अहिंसा के सच्चे पुजारी थे । हिन्दुस्थान के इतिहास में यदि सर्वथा मद्यविरोध या मद्यनिषेध हुआ है तो वह सिद्धराज एवं कुमारपाल के समय में ही । इसका पूर्ण श्रेय आचार्य हेमचंद्र को ही जाता है । कुमारपाल ने हेमचंद्र के उपदेशों पर अमल कर अपने अधीन अट्ठारह देशों में चौदह वर्ष तक प्राणी हत्या को समाप्त कर दिया था । "
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गुजरात के विद्वानों ने हेमचंद्र के समय को हेमचंद्र युग " से अलंकृत कर उन्हें" गुजरात का ज्योतिर्धर उपाधि से विभूषित किया है। हेमचंद्र ने गुजरात को संवारा है, सजाया है एवं लोगों में जीवन शक्ति का मंत्र फूंका है। हेमचंद्र गुजरात की अक्षय निधि थे, हैं एवं रहेंगे। गुजरात में न केवल जैन अपितु प्रत्येक संप्रदाय के लोग उन्हें आदर की दृष्टि से देखते हैं। इसी कारण कनैयालाल माणेकलाल मुंशी ने उन्हें "गुजरात का चेतनदाता" कहा है।
साहित्यिक जीवन : " हेमचंद्राचार्य प्राचीन भारत के बहुत ही भाग्यशाली ग्रंथकार हैं । सिद्धराज एवं कुमारपाल जैन गुजरात के स्वर्णयुगीन दो राजाओं ने हेमचंद्र की साहित्य रचनाओं में केवल सहायता ही नहीं दी परंतु उनसे नम्रतापूर्वक प्रार्थना करके साहित्य सृजन में भव्य प्रेरणाएं भी दी थीं। सिद्धराज व कुमारपाल ने हेमचंद्र की रचनाओं पर करोड़ों रुपये खर्च कर उनकी असंख्य प्रतिलिपियां तैयार करवाई एवं उन्हें कश्मीर से कन्याकुमारी तक गुजरात से आसाम तक संपूर्ण भारत के भारती - भंडारों में स्थापित करवाया । संपूर्ण हिन्दुस्थान का शायद ही कोई एकाध अभागा जैन ज्ञान भंडार रहा होगा जहां हेमचंद्र की कृतियाँ अपनी ज्ञानकिरणों से जनमन को प्रकाशित न करती होंगी। भव्य लोकप्रियता के पीछे जो मुख्य कारण है। वह हैं - हेमचंद्र की शैली सुपाठ्यता, भाषा की सरलता पूर्ण रचना, तटस्थ निष्पक्ष विवेचन, अकाट्य प्रमाण एवं संग्रह की सुगमता ।
हेमचंद्र की साहित्यिक कृतियों पर अनुसंधित्सुओं ने छानवीन कर जो निष्कर्ष प्रस्तुत किया है उस पर दृष्टिपात करने से सिद्ध हो जाता है कि जीवन के किसी भी क्षेत्र से अछूते नहीं थे। दर्शन, धर्म, भाषा, व्याकरण, काव्य. अलंकारादि संपूर्ण विषयों पर आपने रचनाओं का सृजन किया। डॉ.
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