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कुमारपाल ने छ: सौ लेखकों को बुलाया एवं इस साहित्य की सुरक्षा हेतु इक्कीस बड़े ज्ञान भंडार निर्मित करवाए। जैन लोगों का अभिमत है कि लगभग एक सौ शिष्यों का परिवार हेमचंद्र को घेरे रहता था। जो ग्रंथ गुरु हेमचंद्र लिखवाते थे उन्हें वे शिष्य लिख दिया करते थे। हेमचंद्र का प्रमुख शिष्य था रामचंद्र, जिसने हेमचंद्र के स्वर्गवास के बाद भी उनके बारे में अनेक ग्रंथों की रचना की।
व्यक्तित्व, साहित्यिक जीवन एवं अवसान : कलिकाल सर्वज्ञ आचार्य हेमचंद्र ने अपने साहित्य सर्जन के जाद से केवल भारतीय जन-जीवन को ही मंत्र-मुग्ध नहीं किया बल्कि पाश्चात्य जगत में भी अपने ज्ञान की दुंदुभि बजायी थी, इसी कारण पाश्चात्य विद्वानों ने उन्हें ज्ञान का सागर (ओशियन ऑफ नॉलेज) कहा है। हेमचंद्र के जान का प्रकाश साहित्यिक क्षेत्र के अतिरिक्त अध्यात्म, धर्म, भाषा, विज्ञान आदि सभी क्षेत्रों में प्रदीप्त रहा। इनमें एक साथ ही वैयाकरण, आलंकारिक, दार्शनिक, साहित्यकार, इतिहासकार, पुराणकार, कोशकार, छन्दोऽनुशासन, धर्मोपदेशक तथा महान् युगकवि का अनन्यतम समन्वय हुआ है। हेमचंद्र का व्यक्तित्व सर्वकालिक, सार्वदेशिक एवं विश्वजनीन रहा। इनका कार्य सम्प्रदायातीत एवं सर्वजनहिताय रहा, परंतु खेद है कि अभी तक इनके व्यक्तित्व को संप्रदाय विशेष की धरोहर समझ कर उसे बाह्य रुप में प्रसारित, प्रचारित नहीं किया गया है। हेमचंद्र सच्चे अर्थ में आचार्य थे। वे अनेक विद्याओं एवं शास्त्रों के ज्ञाता थे। आचार्य सोमप्रभसूरि ने अपनी रचना 'शतार्थकाव्य' में इनकी भूरि-भूरि प्रशंसा करते हुए कहा है- “विद्याम्भोनिधिमन्थ मन्दरगिरि श्रीहेमचन्द्रोगुणज्ञ :"।
हेमचंद्र की क्षमता, योग्यता, जीवन, कार्य, व्यवहार, आचार एवं चरित उन्हें सौ फीसदी आचार्य सिद्ध करते हैं। 'कालिकाल सर्वज्ञ' में एक रहस्य छिपा हुआ है, वह है हेमचंद्र का चमत्कारीपन। हेमचंद्र मंत्र विद्या के ज्ञाता थे। उन्हें दैविक सिद्धियाँ प्राप्त थीं, किन्तु उस मानत्यागी ने इनका उपयोग इस नश्वर संसार की भौतिक सामग्री को प्राप्त करने हेतु नहीं किया। हाँ, परोपकार का प्रश्र है, उन्होंने उसका उपयोग किया। उदाहरणार्थ उन्होंने अपने आश्रयदाता कुमारपाल की बीमारी अपनी मंत्र-शक्ति से दूर की थी।" इसी प्रकार वद्धावस्था में लता रोग हो जाने पर "अष्टांगयोगान्यास" द्वारा लीला के साथ उन्होंने रोग को जड़ से समाप्त कर दिया था। विभिन्न टीकाओं में जड़ पदार्थों को चेतन करने की इनकी कला का वर्णन मिलता है। अन्हिलवाडा (पाटण) में आज भी आचार्य हेमचंद्र की मंत्र-तंत्र आदि अलौकिक शक्तियों की देन की कथा अनायास कानों को सुनने को मिल जाती है। हेमचंद्र अपने आप में एक "साहित्य कोप'' थे। लक्षणा, तर्क व व्याकरण पर उनका असाधारण अधिकार था। वे तपोनिष्ठ, शास्त्रवेत्ता, तेजस्वी, आकर्षक, कवि, आत्मनिवेदक, योगी, सर्वन-उपासक. भविष्यवेत्ता, महर्षि,
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