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हिन्दी साहित्य के समस्त कालों में राम काव्य-चितेरे रहैं। भक्तिकाल में रामानंद, अग्रदास, ईसरदास, विष्णुदास, सूरदास आदि रामकाव्य के प्रांता थे। तुलसी इस काल के रामकाव्य के प्रधान सुमेरु थे। रीति एव वर्तमान काल में भी कवियों का रामकथात्मक सृजन जनमानस के लिए नव प्रेरणाअं का स्रोत रहा।
इन कविवृन्दों में हेमचंद्र ने त्रिषष्टिशलाकापुरुषों में राम को स्थान देकर महान साहित्यिक योगदान किया है।
जैनाचार्य हेमचंद्र के व्यक्तित्व का अंकन मेरे लिए तो पंगु के गिरी लांघने जैसा होगा। क्योंकि जिस महान प्रतिभा ने राज्यसत्ता को धर्मानुसार अनुसरण करवाया हो तथा शैव व वैष्णव राजाओं (कुमारपाल, सिद्धराज आदि) को जैन धर्म में समन्वित कर जैन सिद्धांतों को समस्त राज्य में लागू करवाने का सफल प्रयत्न किया हो, ऐसे गंभीर व्यक्तित्व को किन शब्दों में आंका जाए। गुर्जर भूमि को अहिंसामय बनाने का एक मात्र श्रेय हंपचंद्राचार्य को ही जाता है। उनके लिए तेजस्वी, कवि, आकर्षक साहित्योपासक, शास्त्रवेता, आत्मनिवेदक, योगी, धर्मप्रचारक, मातृ-पितृ भक्त आदि सभी विशेषण भी अपूर्ण लगते हैं। मेरी राय में. हेमचंद्र के लिए देशोद्धारक, ज्ञानसागर, गुजरात के चेतनदाता एवं कलिकाल सर्वज्ञ जैसे विशेषण ही व्यक्तित्व के परिचायक सिद्ध होंगे।
हेमचंद्र का साहित्यिक योगदान अप्रतिम है। अंग ग्रंथ, वृनियाँ, व्याकरण, योगशास्त्र, द्वयाश्रय, छंडोऽनुशासन, काव्यानुशासन, नामसंग्रह. सिद्धहेम शब्दानुशासन, नामसंग्रह तथा त्रिषष्टिशलाकापुरुष चरित जैसे कई महत्त्वपूर्ण ग्रंथों की रचना कर आपने संस्कृत में नव आकर्षण उपस्थित किया। वस्तुतः आपकी साहित्यिक प्रतिभा असंदिग्ध है।
हेमचंद्र महाकवि होने के साथ महान दार्शनिक भी थे। इनका दार्शनिक अंचल असीम, अमूल्य एव महत्वपूर्ण है। इनका दर्शन जैन दार्शनिक मान्यताओं से अभिप्रेरित भले ही रहा हो पर विध्वंसात्मक नहीं है। इन्होंने माया, जगत, ईश्वर, जीव, भक्ति, मोक्ष, नामजप, स्वर्ग-नरक, भाग्यवाद. अहिंसा, सत्संग, गुरुभक्ति आदि मुद्दों पर विचार प्रस्तुत कर रामकथात्मक दार्शनिक व्यापकता में वृद्धि की है।
हेमचंद्र ने जैन रामायण में रामकथा का विवेचन करते हुए श्रमण परंपरा का प्रतिनिधित्व किया है। इनकी रामकथा आख्यानों का इन्द्रजाल है। इसमें अनेक लघु-वृहद् आख्यान, जिनमें वंशावलियों का तालमेल प्रस्तुत किया है, पाठकों के लिए भार-रुप भी बन सकते हैं। हेमचंद्र ने वाल्मीकि रामायण के अनुकरण पर राम के राज्याभिषेक के बाद भी कथा को कथ्य का अंग बनाया है। विषय वस्तु के प्रस्तुतिकरण का हेमचंद्र का अपना दृष्टिकोण रहा
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