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कृतित्व पर आज दिन तक कोई पुस्तक सामने नहीं आई। इसके साथ ही साथ जैन रामायण (त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित, पर्व ७) जैसा रामकथात्मक साहित्य शोध के अभाव में जनमानस से लुप्तप्राय रहा। मैंने इस श्रेष्ठ रचना को सरल कथावस्तु के सहारे आम आदमी तक पहुँचाने का लघु प्रयास किया है। ऐसे प्रयास अंतिम नहीं होते। वर्तमान शोध में भावी शोध का अप्रत्यक्ष दर्शन एक सहज अनुभूति है। प्रथम अध्याय 'जैन रामकथा परंपरा' के अंतर्गत रामकथात्मक जैन साहित्य का प्रारंभ से अंत तक सांक्षिप्त परिचय देने का प्रयास किया गया है। यह अनुच्छेद जैन परंपरा में रामकथा की व्यापकता को उजागर करता है। व्यक्तित्व एवं कृतित्व नामक दूसरे अध्याय में जैनाचार्य हेमचंद्र के जीवन मूल्यों की जानकारी के साथ-साथ इनकी महान काव्य सृजन प्रतिभा के दर्शन भी होते हैं। तीसरा अध्याय त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित, पर्व ७ का दार्शनिक पक्ष स्पष्ट करता है। इस अध्याय में जैन दर्शन का कुछ विस्तारपूर्वक एवं स्पष्ट विवेचन करने का लक्ष्य रहा है ताकि जैन दर्शन के तत्वों की जानकारी अजैन पाठकवृन्दों को भी हो सके।
चौथा अध्याय केन्द्रीय हैं, जिसमें श्रमण परंपरा की रामकथात्मक मान्यताएं उजागर हुई हैं। यह अध्याय कृति की आत्मा है। कथावस्तु नामक इस अध्याय में त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित, पर्व ७ के लगभग ३००० श्रोकों को कथाबद्ध कर विभिन्न शीर्षकों में सरल रुप में प्रस्तुत करने का प्रयास किया है। पंचम अध्याय 'काव्य सौष्ठव' में काव्य कला के समस्त अंगों, यथा- रस, छंद, अलंकार, वर्णन, भाषा, संवाद, काव्यरुप, आदि पर सोदारहण विवेचना की गई है। अंत में जैन रामायण की सूक्तियों के अंतर्गत कृति में आए सुभाषितों की लम्बी सूची प्रस्तुत कर नीतिपरक महत्ता को दर्शाया गया है। अध्याय छ: में कुछ ठोस जैन रामकथात्मक नवीन मान्यताओं को प्रस्तुत किया गया है। यह अध्याय मेरी दृष्टि से अधिक महत्व पूर्ण रहेगा क्योंकि ब्राह्मण तथा श्रमण परंपरा की भिन्न मान्यताओं का चित्र इससे स्पष्ट हो जाता है तथा नए शोधार्थियों के लिए चिंतन का मार्ग प्रशस्त होगा। रामकथा परंपरा वैदिक काल से अनवरत चली आ रही है। ऋग्वेद, वाल्मीकि रामायण, महाभारत (रामोपाख्यान), योगवासिष्ठ, अध्यात्म रामायण, आनंद रामायण, महा सामायण आदि में रामकथा के महान मूल्य समाविष्ट हुए हैं। संस्कृत के काव्यग्रंथों- रघुवंश, जानकीहरण, प्रतिमा, अभिषेक, महावीरचरित, उत्तमरामचरित, रावणवध, अनर्धराघव, बालरामायण, हनुमत्राटक, प्रसन्नराघव आदि को भी रामकथात्मक कहा जा सकता है। जैन व बौद्ध विद्वानों ने भी राम को क्रमशः महापुरुष एवं बोद्धित्सव मानकर साहित्य सृजन किया। पद्मपुराण, हरिवंशपुराण, वायुपुराण, ब्रह्मपुराण आदि में भी संक्षिप्त रामकथा विवेचन है।
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