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उपसंहार
चिरकालीन भारतीय आदर्शों तथा समसामयिक मूल्यों के बीच रामकथ्यात्मक यात्रा भारतीय मनीषा की बौद्धिक एवं भावनात्मक प्रेरणाओं की एक विशिष्ट दिशा का संकेत प्रदान करती है। सतत परिवर्तनशील युग और परिवेश के प्रश्नों तथा अनेक प्रकार की समस्याओं के समाधानार्थ व्यक्तित्व के मौलिक गुण अनिवार्यतः रामकथा के ही केन्द्रीय पात्रों के मौलिक तथा अवान्तर चरित - सूत्रों से घटित हुए प्रतीत होते हैं। समय विशेष के अंतर्गत राष्ट्र निर्माण के लिए जो प्रसंग एवं पात्र आधार रहते हैं, उन्हें एक सच्चा साहित्यकार अपनी लेखनी से वंचित कैसे कर सकता है ? इस दृष्टि से रामकाव्य हमारे जातीय जीवन की अनवरत सफलता का प्रतीकात्मक इतिहास है इसमें संदेह की गुंजाइश नहीं ।
त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित, पर्व 7 ( जैन रामायण) पर आधारित रामकथात्मक साहित्य के मानमूल्यों का वैचारिक प्रयास पूर्व के अध्याय में किया गया है। निश्चित है कि रामकथात्मक शोध का क्षेत्र अत्यंत विशाल एवं भव्य है। अब तक ऐसे अनेक कार्य हो चुके हैं। वैसे मूलतः मेरा पी. एच. डी. का शोधग्रंथ तुलनात्मक है जिसमें मैंने, जैन कवि स्वयंभूकृत पदमचरित व मानस का तुलनात्मक अध्ययन (दिक्षित ओमप्रकाश), "पदमचरित व मानस का तुलनात्मक अध्ययन" (शर्मा देवनारायण), पदमचरित व मानस का तुलनात्मक अध्ययन (डॉ. प्रा. नरसिंह गजानन साठे ), पद्मपुराण और रामचरितमानस (डॉ. रमाकांत शुक्ल) आदि के समानांतर साहित्यिक शोध का प्रयास किया है। परंतु इस कृति का अपना विशेष महत्व यह है कि जैनाचार्य हेमचंद्र जैन साहित्य के प्रकांड विद्वान एवं महान कवि रहे हैं । परंतु राष्ट्रभाषा में उनके व्यक्तित्व एवं
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