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तक भी रामकथा परंपरा में कहीं भी समाविष्ट नहीं हुए हैं। श्रमण परंपरा के ये रामकथात्मक प्रसंग ब्राह्मण परंपरा के पाठकों के लिये नवीन उद्भावनाएँ ही कहे जा सकते हैं
(१) रावण के जन्म से लेकर यौवनवय तक के अनेक प्रसंग : जैन रामायण परंपरा में रावण को महत्ता का दर्जा हासिल है । वह कैकेसी एवं रत्नश्रवा का पुत्र है तथा एक मुख वाला है। ' जन्म होते ही रत्नश्रवा ने उसका नाम दशमुख दे दिया । जन्मते ही रावण ने एक हीरों के हार को खींचकर गले में डाला एवं अपनी वीरता के भावी संकेत से सबको आश्चर्यचकित कर दिया था । ' वह पूर्वभव में सावित्री व कुशध्वज का प्रभाव नामक ब्राह्मण पुत्र था । किशोरावस्था में रावण ने अपने लघुभ्राताओं के साथ भीमारण्य में जाकर अष्टाक्षरी एवं षोडशाक्षरी विद्याओं को सिद्ध किया । भयंकर यक्षों के घोर कृत्यों से लोहा लेते हुए रावण ने एक हजार विद्याओं को वश में कर चंद्रहास खड्ग को भी सिद्ध किया। 4
मय पुत्री मंदोदरी से जब रावण का विवाह हुआ तब अन्य छः हजार कन्याएँ भी रावण के रुप पर मोहित हो गईं, उन सबका विवाह भी रावण से ही हुआ। ' मंदोदरी व इन छः हजार रानियों के अतिरिक्त भी पद्मावति, अशोकलता, विद्युतप्रभा, श्रीप्रभा एवं रत्नावली ये सभी रावण की प्रमुख रानियां थीं। ' बलात् लाई गई अन्य कन्याएँ तो अलग ही थीं। रावण ने दिग्विजय कर अनेक विद्याधरों को अपने वश में कर लिया था । सहस्रांशु को जिन्दा भी पकड़ लिया था । 7 दुर्लध्यपुर के किले को जीतकर सुदर्शन चक्र प्राप्त किया' व यमराज व इन्द्र को पछाडा ।
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इन सब के अलावा भी रावण से संबंधित अन्य कई नई कथाएं जैन रामायण में वर्णित हैं जो ब्राह्मण राम कथा परंपरा के लिए एकदम नवीन हैं, जैसे, रावण का वैश्रवण से युद्ध" रावण का बालि से वाक्युद्ध एवं सैन्य युद्ध, ' रावण के रुदन के कारण उसका नाम "रावण" पड़ना, 13 अमोघविजया शक्ति
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युद्ध,
सहस्रहार राजा की
रावण द्वारा केली- मुनी से
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प्राप्त करना, . 14 नारद-रावण मिलन, 15 रावण - इन्द्र प्रार्थना पर इन्द्र को रावण द्वारा सशर्त रिहा करना, अपनी मृत्यु का कारण पूछना, तथा मुनि द्वारा यह कथन कि- "तुम्हारी मृत्यु परस्त्री-दोष से होगी" ऐसा कहना, 19 तब परस्त्री की तरफ आँख भी न उठाने की रावण द्वारा दृढ प्रतिज्ञा करना 22 आदि अनेक प्रसंग ।
( २ ) हनुमान की माता अंजना का भावपूर्ण चित्रण : हनुमान रामकथा के प्रमुख पुरुष पात्रों में से एक हैं । तुलसी को राम-दर्शन का लाभ हनुमान के माध्यम से मिला । तुलसी के हनुमान तो " रामदूत अतुलित बलधामा अंजनिपुत्र पवनसुतनामा" से विख्यात हैं । जिन्हें राम से प्यार है उन्हें हनुमान से प्यार स्वतः हो जाता है। मानस के किष्किंधा कांड में
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