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त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित, पर्व ७ (जैन रामायण) की नवीन उद्भावनाएँ
अब तक की गई विवेचना से जैन रामायण के बारे में काफी जानकारी मिल चुकी है। इस अध्याय के अंतर्गत हमने त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित, पर्व 7 की नवीन उद्भावनाएं, जो ब्राह्मण परंपरा से एकदम भिन्न तथा नव्य हैं, प्रस्तुत करने का प्रयास किया है।
जैन रामायण के ये नव्य प्रसंग साधारण ब्राह्मण परंपरा के जनमानस के मस्तिष्क पटल तक अभी नहीं पहुंचे हैं। जैन साहित्य को अंधेरी कोठरियों में भर कर उसे बंद रखने की बात हम पूर्व में कह ही चुके हैं। परंतु इस प्रकार के शोध ग्रंथों के सहारे जब ये नवीन प्रसंग तुलसी समर्थक राम भक्तों के कानों तक पहुँचेंगे तो अल्पहृदयी लोग एक बार अवश्य ही कोपाविष्ट हो जायेंगे। दूसरी तरफ साहित्यकार, अनुसंधित्सु, व्याख्याकार एवं विचारवान व चिंतनशील समालोचकं पुरुष आश्चर्य युक्त स्मित इन प्रसंगों की तह में पहुँचने . का प्रयास करेंगे। इसका कारण यह रहा है कि जैन रामायण के कुछ प्रसंग मानस की पारंपरिक मान्यताओं से शत प्रतिशत प्रतिकूल हैं, साथ ही उन्हें पढकर पाठकों के हृदय में अपने ईष्ट के प्रति अन्याय करने जैसा लगता है। "लघुचेतसाम्" व्यक्ति ऐसे प्रसंगो को सहन नहीं कर सकते हैं, हाँ, "उदारचरितानाम्' की बात तो अलग ही है क्योंकि वे हताश होने के बदले बाल की खाल निकालने में जुट जाएंगे।
यहां हम त्रिपष्टिशलाकापुरुषचरित, पर्व ७ के कुछ ऐसे प्रसंग प्रस्तुत करने जा रहे हैं जो वाल्मीकि रामायण से लेकर साकेत एवं राम की शक्तिपूजा
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