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हनुमान का अवतरण होता है। उससे पूर्व वे तुलसी की रामकथा से अलग है । परंतु त्रिपष्टिशलाकापुरुष के सातवें पर्व में हेमचंद्र ने हनुमान की माता अंजना का प्रकरण अध्याय तीन के लगभग तीन सौ श्रोको में विस्तारपूर्वक वर्णित किया है। इस अध्याय में अंजना व हनुमान के चरित्र से संबंधित अनेक नए प्रसंग प्रस्फुटित हुए हैं। यह संपूर्ण अध्याय हनुमान की माता अंजना के भावपूर्ण चित्रण एवं हनुमान से संबंधित प्रसंगों से पूर्ण है जिसका संक्षिप्त विवेचन हम नीचे प्रस्तुत कर रहे हैं।
अंजना महेन्द्रपुर नगर के राजा महेन्द्र की पुत्री थी। " उसकी युवावस्था होने पर मंत्रियों आदि की सहायता से आदित्यपुर नगर के राजा प्रह्लाद के पुत्र पवनंजय से अंजना का विवाह तय हुआ। एक बार पवनंजय अपने मित्र प्रहस्ति के साथ गुप्त रीति से अंजना को देखने हेतु सातवें महल में पहुंचा जहाँ अंजना अपनी सखियों के साथ थी। सखियाँ जब अन्य राजकुमार विद्युतप्रभ की प्रशंसा कर रही थीं उस समय अंजना मौन थी। 24 यह देख पवनंजय अति क्रोधित हुआ एवं अंजना से विवाह न करने का फैसला कर लिया। 5 पुनः मित्र के समझाने पर पवनंजय तैयार हो गया एवं दोनों का पाणिग्रहण समय पर हो गया। 26
विवाह के बाद पवनंजय अंजना से विमुख रहा। " अजंना उसके विरह में जलती रही। 28 कुछ ही दिन बाद पवनंजय रावण की सहायतार्थ बिना अंजना से बोले वरुण. से युद्धार्थ घर से निकल गया। 29 वहाँ पवनंजय को अपनी भूल का एहसास होने पर वह मित्र सहित आकाशमार्ग से उड़कर सीधा अंजना के महल में पहुँचा। प्रथम प्रवेश प्रहसित ने किया परंतु उसी समय अंजना ने उसे अपमानित कर बाहर निकाल दिया। यह देख पवनंजय प्रसन्न हुआ एवं अंजना से क्षमा मांगकर पूरी रात्रि अंजना के साथ रसयुक्त होकर व्यतीत की। प्रातः काल होते ही जब पवनंजय ने बिदा ली तो अंजना कहने लगी-नाथ शीघ्र आना, मैं ऋतुस्नातता थी। आप समय पर नहीं आए और गर्भ रह गया तो मैं कलंकित हो जाऊँगी। पवनंजय शीघ्र आने का आश्वासन देकर चला गया।
कुछ ही समय में अंजना के द्वारा गर्भ धारण करने का समाचार कलंक-कीर्ति के रुप में चारों और फैल गया। 34 अंजना की सास केतुमति की आज्ञा से अंजना को सेवकों ने राज्य से बाहर निकाल दिया। 35 दु:खी अंजना ने पितृगृह की शरण ली परंतु वहां भी उसे तिरस्कार ही मिला। वह वहाँ से निकाल दी गई। अब वह अपनी सखी वसंततिलका के साथ जंगलों में भटकने लगी। 37 तभी अमितगति मुनि के पास एक गुफा में जाकर अंजना ने अपना संपूर्ण वृत्तांत कहा। मुनि ने अंजना के गर्भ-जीव का एवं अंजना का पूर्वभव सुनाया। मुनि ने अंजना को जैन धर्म में दीक्षित होने की प्रेरणा दी। अंजना ने उस गुफा
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