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भी नहीं है, गंधर्वनारियों का उसका रुप है वैसा देव चित्रित नहीं कर सकते, परुप अनकरण नहीं कर सकते एवं स्वयं ब्रह्मा बना नहीं सकते।
युद्ध वर्णन : जैन रामायण में लगभग पचास युद्धों - वर्णन है उनमें से कुछ वर्णन अति विस्तारयुक्त हैं। इनके युद्ध वर्णनों से ठक सहज की कवि की वर्णन कुशलता का परिचय प्राप्त कर लेते हैं । युद्ध वर्णनों की सूची हम पीछे दे चुके हैं। यहाँ लक्ष्मण-रावण युद्ध का लघु अंश ,जुत हैं
राम, रावण के अति उग्र सैनिकों की भुजाओं के प्रहारों में त्रासयक्त दिग्गजों युक्त युद्ध पुनः प्रारंभ हुआ। रुई को जैसे हवा दूर कर दे द वैसे ही समस्त राक्षसों को दूर करते हुए लक्ष्मण बाणों से रावण को जान करने लगा। लक्ष्मण के पराक्रम से भयभीत रावण ने विश्रभयरुपा बहुमा विद्या का स्मरण किया। स्मरण मात्र से विद्या वहाँ उपस्थित हो गई जिसकी सहायता से रावण ने अनेक रुप पैदा किए। उस समय लक्ष्मण ने पृथ्वी पर, प्रकाश पर, आगे-पीछे एवं दाएँ-बाएँ भी विविध शस्त्रों से युक्त रावण के म. देखे तव लक्ष्मण भी गरुड़ रुपी लक्ष्मण बनकर अनेक बाणों से रावण को मारने लगे। लक्ष्मण के बाणों से व्याकुल हुए रावण ने अर्द्व चक्रित्व से चिह्न रुप जाज्वल्यमान चक्र का स्मरण किया। रोष युक्त लाल नेत्रों वाले इन रावण ने अंतिम शस्त्र रुप उस चक्र को गगन में घुमाकर लक्ष्मण पर फेंका परंतु वह चक्र उदायाचल के शिखर पर सूर्य की तरह प्रदक्षिणा करके लक्ष्मण, के दाहिने हाथ में स्थिर हो गया।
___खिन्न हुआ रावण विचार करने लगा, मुनि का वचन सत्य हुआ, विभीषणादि के विचार भी सत्य होंगे। भाई को निराश जान कर विभीषण पुनः कहने लगा - "हे भाई, अगर तुम्हें जीने की इच्छा हो तो अभी सीता को छोड़ दो।' क्रोधयुक्त रावण बोला- क्या मेरे पास केवल चक्र ही अस्त्र है : चक्ररहित होने पर भी मैं इस शत्रु लक्ष्मण को केवल मुट्ठियों के प्रहार से ही म. दूंगा।"
इस प्रकार अभिमान युक्त बोलते हुए राक्षसपति रावण की छाती लक्ष्मण ने उसी चक्र से फाड़ डाली।
__इस प्रकार हेमचंद्र ने अवसरानुकूल विविध वर्णन प्रस्तुत किये हैं। ऋतु वर्णन सूक्ष्म व संक्षिप्त रहे हैं। सौंदर्य वर्णन में सीता के अंगों का वर्णन कर मर्यादा का अंकुश कुछ ढीला रहा हैं। श्रृंगार वर्णन विस्तृत एवं पार्थिवतायुक्त हैं। युद्ध वर्णन अधिक ठोस प्रतीत होते हैं। 762 जो बिंबोत्पादकता पूर्ण हैं। सारंशतः त्रिषष्टिशलाकापुरुष चरित पर्व ७ के वर्णन विस्तृत, चित्रात्मक एवं अलंकारिक हैं।
(५) भाषा : त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित. पर्व ७ (जैन र-यण की भाषा) भाषा अभिव्यक्ति की प्राणशक्ति है। डॉ. भोलानाथ तिवारी भाषा की परिभाषा देते हुए लिखते हैं- "भाषा उच्चारण अवयवों से उच्च न मूलतः
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