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कमलयुक्त कालिंदी के तालाब के समान बन गया था। उस समय समम्न विश्व विना प्रकाश के पाताल जैसा हो गया था। अंधकार से सघन होने पर कामीजनों से मिलने के लिये दूतियाँ तालाब की मछलियाँ की तरह निश्शंक चेष्टाएँ करने लगी। जानुपर्यन्त धारण किए हुए झांझर वाली, तमाल वृक्ष-से श्याम वर्ण वाली, कस्तूरी युक्त देहवाली अभिसारिकाएँ घूमने लगी।
अब उदयगिरी-रुप प्रसाद पर सुवर्ण कलश की उपमा युक्त, किरणों-रुप अंकुश के लिये महाकंद सम चंद्र उदिय हुए। विशाल गोकुल के समान नभस्तल में गायों के साथ महावृषभ की तरह तारों के साथ चंद्रवैरयुक्त क्रीड़ा कर रहा था। कस्तूरी के आधार रुपा के पात्र समान स्फुरमान चिह्न वाला चंद्रमा स्पष्ट रुप से प्रकाशित हुआ। कामदेव के वाणों के समान चंद्रकिरणें विरही-जनों के द्वारा बीच में पकड़े हाथ छुड़ाते हुए फैलने लगीं। चिरकाल तक भोगने पर भी दुर्दशा को प्राप्त पद्मिनी को छोड़ भ्रमर कुमुदिनी को प्यार करने लगे। चंद्रकांत मणियों की वर्षा करता हुआ, नवीन सरोवरों की रचना करता हुआ चंद्रमा आत्मीयजनों को ख्याति युक्त बना रहा था। दिशाओं के मुख को स्वच्छ करने वाली ज्योत्स्ना पद्मिनियों की तरफ उच्च प्रकार से भटकती कुलटाओं के मुख को म्लान बना रही थी। 239
__ सौंदर्य वर्णन : जैन रामायण में सौंदर्य वर्णनों की कमी नहीं। अनेक स्थल दर्शनीय हैं। सीता-सौंदर्य वर्णन अत्यंत उत्कृष्टतायुक्त प्रतीत होता हैं। कुछ अंश दिखिए
उसके बाद दिव्य अलंकार धारण किए हुए, पृथ्वी पर चलने वाली, देवी के समान, सखियों से घिरी हुई सीता वहाँ आई। वहाँ धनुष-पूजा कर व राम को मन में रखकर मानवों की आँखों के लिए अमृत सरिता-समान सीता वहाँ खड़ी रही। 240
__ "और सीता रुप व लावण्य की संपदा के साथ बढ़ने लगी। चंद्ररेखा के समान धीरे-धीरे वह कलाओं में पूर्ण हुई। धीरे-धीरे युवावस्था को प्राप्त, कमल जैसी पवित्र आँखों वाली, लावण्य की लहरों की नदी-जैसी समुद्र कन्या लक्ष्मी जैसी दिख रही थी।" 241
सीता रुप एवं लावण्य के वैभव से पूर्ण स्त्रियों की सीमा रुप है वह देवी नहीं, नागकन्या नहीं, मनुष्य भी नहीं, कोई अन्य ही है। जिसने समस्त देव-दानव की स्त्रीजनों को दासी रुप किए हैं। ऐसा उसका रुप तीनों लोकों में अप्रतिम व वाणी से अगोचर है। 242
नारद ने भी इस प्रकार कहा- वह सीता मिथिलानगर के जनक की पुत्री है जो मेरे द्वारा चित्र में बताई गई है। रुप से वह जैसी है वैसी चित्रित करने में असमर्थ हूँ। दूसरा भी कोई नहीं कर सकता। आकृति से वह लोकोत्तर ही है। सीता जैसा रुप देवियों का भी नहीं है, भवनपति देवियों का
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