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________________ तीसरा भाग ओरसे कुछ सेना ले जाकर वेरकपुर पहुंचे और रत्नचूल विद्याधरसे बड़ी वीरताके साथ लड़कर उसे बांधकर राना मृगाङ्कका मित्र बना दिया और वह विलासक्तीको लेकर राजगृही लौट माए । इससे राजा श्रेणिक उनपर बड़े प्रसन्न हुए और उनका बड़ा सम्मान किया। (६) एक समय स्वामी सुधर्माचार्यजीका उपदेश होरहा था। जम्बुकुम' भी उनका उपदेश सुनने गए । उनका उपदेश वैराग्यसे भरा हुमा था । उपदेश सुनकर उन्हें विषयभोगोंमे घृणा होगई और वे उसी समय मुनि दीक्षा लेने को तैयार होगए पान्तु भाचार्य महाराजने माता पिताकी माज्ञाके विना दीक्षा नहीं दी। (७) ये माता पिताके आज्ञा लेने पाए। माता पिताने इन्हें बहुत समझाया परन्तु ये तनिक भी नहीं माने तब अन्तमें माता पिताने कहा कि तुम विवाह करलो और विवाह के बाद संतान होनेपर दीक्षा लेलेना । उस समय हम भी तुम्हारे साथ दीक्षा लेलेंगे, परन्तु कुमारने इसे भी स्वीकार नहीं किया। (८) जंबू कुमारके वैराग्यकी बात चारों कन्यामोंको मालूम हुई, उन्होंने प्रण किया कि जम्बुकुमारके सिवाय हम किसीसे विवाह न करेंगी, तब उन्होंने इस शर्तपर विवाह कराना स्वीकार किया कि विवाह करने के बाद ही वे दीक्षा धारण कर लेंगे। (९) एक रात्रि में ही चारों कन्याओं के साथ कुमारका विवाह होगया। तब चारों कन्यामोंने उन्हें अपनी वचन चातुर्यता द्वारा
SR No.022685
Book TitlePrachin Jain Itihas Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurajmal Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1939
Total Pages144
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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