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________________ प्राचीन जैन इतिहास। .७४ संसारमें फंसानेका उद्योग किया। उन्होंने अनेक उदाहरण देकर समझाया कि वर्तमान सुखको छोड़कर तपस्या करके भागामीक सुखोंको चाहना उचित नहीं। जंबूकुमारने उन सबको उत्तर देकर उन्हें हरा दिया। (१०) माता-पिताने भी इन्हें बहुत समझाया, परन्तु उन पर कुछ भी प्रभाव नहीं पड़ा। इसी समय विद्युत् नामक प्रसिद्ध रात्रपुत्र चोर इनके यहां चोरीको आया था। उससे माताने पुत्र के बैराग्यकी बात कह सुनाई, तब विद्युत् चोग्ने कुमारका मामा बनकर उन्हें बहुत समझाया परन्तु कुमाग्ने अपने दीक्षालेनेके विचारको नहीं बदला । अन्त में माता-पिताकी भाज्ञानुसार विद्युत्चोर तथा उनके ५०० साथियों और अनेक प्रतिष्ठित पुरुषों के साथ २ श्री सुधर्माचार्य के निकट जिन दीक्षा ग्रहण की। माता और चारों स्त्रियोंने भी दीक्षा ली। (११) ९ वर्ष के उय तप करने पर वीर निर्वाण संवत् १२में जम्बूम्बामी मुनि श्रुतकेवली हुए। (१२) श्रुतकेवली होनेके १२ वर्ष बाद वीर निर्वाण संवत २३ जेठ शुक्ला ७ को उन्हें केवलज्ञान प्राप्त हुमा । (१३ ) उन्होंने ४० वर्ष तक धर्मोपदेश दिया और वीर संवत् ६२ में मथुगपुरीके चौरासी नामक स्थानसे मोक्षपद प्राप्त किया।
SR No.022685
Book TitlePrachin Jain Itihas Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurajmal Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1939
Total Pages144
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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