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________________ प्राचीन जैन इतिहाम। ७१ पहुंचे। वहां दिगंपरी दीक्षा लेकर वे महातप करने लगे और अंतमें उन्होंने केवल ज्ञान प्राप्तकर मोक्ष काम लिया । पाठ २०। अंतिम केवली-जंबूकुमार। (१) वीर निर्माणसे २२ वर्ष पूर्व राजगृहीके प्रसिद्ध सेठ अहंदत्तकी पत्नी जिनमती के मापका जन्म हुभा था । (२) ५ वर्षकी भायुमे ही आपका विद्याध्ययन हुभा था। आप शास्त्रज्ञान और शस्त्रकलामें बड़े निपुण और वीर थे। (३) जब भापकी उम्र १३ वर्षकी थी उस समय एक दिन मगधनरेश श्रेणिकका यह बंध हाथी मचानक बिगड़कर नगरमें भारी उपद्रव करने लगा और राजाके बड़े २ सामन्तोंके वशमें न माया तब इन्होंने अपने साहस और पराक्रमसे उसे अपने वश कर लिया। इससे राजदरबारमें आपका बड़ा सम्मान हुमा । (४) कुछ समय पश्चात् राजगृहके प्रसिद्ध चार सेठोंकी कन्याओंसे आपकी सगाई को होगई । (५) वेरलपुरके राजा मृगाङ्कने अपनी कन्या विलासवती राजा श्रेणिकको देना स्वीकार की थी। पान्तु राजा मृगाङ्कका पाक राजा नचूल उस कन्याको लेना चाहता था। उसने राजा सगाकर चढ़ाई कर दी थी, तब राजा मृगाङ्कने अपनी सहायताके लिए सजा श्रेणिकके यहां दूत भेजा। जम्बूकुमार राजा श्रेणिककी
SR No.022685
Book TitlePrachin Jain Itihas Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurajmal Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1939
Total Pages144
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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