SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 82
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ तीमग भाग उसके मनमें लोम भागया, उसने कुछ रुपये लेकर चन्दनाको एक व्यापारीके हाथ बेच दिया । ( ४ ) व्यापारीने उसे लेजाकर कौशांबीके बाजारमें बेचनेको खड़ा कर दिया। कौशांबीके सेठ वृषभसेन उसको मुंह मांगा दाम देकर चन्दनाको अपने घर ले गए और उसे अपनी पुत्रीकी. तरह प्यार करने लगे। (५) वृषमसेनकी सेठानी चन्दनाके ऊपर सेठनीका इस तरह प्यार देखकर उससे डाह करने लगी, उसे चन्दनापर अनेक तरहकी शंकाएं होने लगी। मन्तमें उसने एक दिन चन्दनाके हाथ पांवमें बेड़ियां डालकर एक तहखाने में बन्द कर दिया। (६) सेठजीने उसका कई दिन्तक पता लगाया पर वे उसकी खोज न कर सके । एक समय पता लगाते हुए वे बन्दीग्रह पहुंचे, वहां उन्होंने भूख प्याससे तडपती हुई चंदनाको देखा, उन्होंने उसे बंदीगृहसे बाहर निकाला और उसकी हाथकड़ी बेडियां खोलने लगे। उनसे एक बेड़ीका बन्द नहीं टूटा। वे उसे खोलने के लिए लुहारको बुलाने गए । (७) इसीसमय भगवान महावीर माहारके लिए माये थे, वे भाकर चंदनाके साम्हने खड़े होगए। चंदना एकदम खड़ी हो गई। साम्हने सूपमें कुछ चावक रक्खे थे, उन्हींको लेकर उसने भगवानको पड़गाहा । भगवानने वहीं भाहार ग्रहण किया । उनका माहार सानंद होचुकने के कारण देवोंने पञ्चाश्चर्य किये। इससे सारे नगरमें चंदनाके दानको चर्चा होगई।
SR No.022685
Book TitlePrachin Jain Itihas Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurajmal Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1939
Total Pages144
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy