SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 81
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ भाचान जैन इतिहाम। ६६ हैं और यह राज्य सम्पत्ति है, यदि तुम्हें ये मच्छी जान पड़ती हैं तो तुम इन्हें स्वीकार करो। (१६) बारिषेण मुनिध यह कर्तव्य देखकर पुष्पडाल बहुत लजित हुमा । वह नमस्कार कर बोका-प्रभो ! आप धन्य हैं, आपने मेरे मोहको हटा दिया, अब मुझे सच्चा वैराग्य होगया, भाप मुझे क्षमा कीजिए और प्रायश्चित्त देकर सच्चे मार्गमे लगाइए। वारिषेण मुनिने प्रसन्न होकर उसे प्रायश्चित्त देकर फिर से दीक्षा दी। ... (१७) वारिषेण मुनिने पुष्पडालके साथ २ घोर तपस्या की और अन्त में केवलज्ञान प्राप्तकर सिद्ध पद पाया। पाठ १८ । सती चन्दना। (१) चन्दनाकुमारी वैशालीक राजा चेटककी पुत्री थी। वह बड़ी धर्मात्मा और पवित्र थी। (२) एक दिन वह अपने बगीचे झूला झूल रही थी, इसी समय एक विद्याधर वहांसे निकला, वह चंदनाको देखकर मोहित होगया और विमानमें बिठाकर लेगया। बेचारी चन्दना रोती हुई विमान में बैठी जारही थी कि इसी समय उस विद्याधरकी पत्नी वहां मापहुंची सब विद्याधरने अपनी पत्नीके भयसे उसे जंगल में ही छोड़ दिया। 7 (३) जंगलमें फिरती हुई चन्दनाको भीलोंके सरदारने देखा, वह से अपने घर लेगया। परन्तु चन्दनाकी सुन्दरता देखकर'
SR No.022685
Book TitlePrachin Jain Itihas Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurajmal Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1939
Total Pages144
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy