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________________ प्राचीन जैन इतिहामा ६८ (८) कौशांबीकी रानीने भी यह समाचार सुने, उन्होंने चंदनाको अपने यहां बुलाया। कौशांबीकी रानी मृगावती चंदनाकी बहिन थी, वह चंदनाको देखकर अत्यन्त प्रसन्न हुई । (९) रानी मृगावतीने चन्दनाको प्रेम सहित अपने यहां रक्खा परन्तु उसका हृदय संसारसे अत्यन्त उदास होगया था इपलिए थोड़े समय पश्चात ही भगवान महावीर के समवशरणमें जाकर उसने आर्यिकाकी दीक्षा ग्रहण की। (१०) भगवान महावीरके समवशरणमें चन्दना माथिका संघकी नायिका हुई, उन्होंने अनेक स्थानोंमें भ्रमण कर नारियोंको धर्मका उपदेश दिया । अन्तमें शरीर त्यागकर स्वर्ग प्राप्त किया। पाठ १९। क्षत्रिय-रत्न जीवधर। (१) राजपुरी नगरीके राजा सत्यंधर थे, उनकी रानी का नाम विजया था। वे भानी रानीके प्रेममें अत्यंत भासक्त रहते थे और उनने अपने राज्यका कार्य काष्टांगार नामक राज-कर्मचारीके सुपुर्द कर दिया था। (२) कुछ दिनोंमें विनया रानीके गर्भ रहा, उस समय रानीको एक स्वप्न हुमा। जिसके फलका विचार करनेपर रानाको निश्चय हुमा कि मैं मारा जाऊंगा, इससे अपने वंशकी रक्षाके विचारसे एक मयूरके भाकारका यंत्र बनाया जो कलके घुमानेसे
SR No.022685
Book TitlePrachin Jain Itihas Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurajmal Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1939
Total Pages144
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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