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________________ तीसग भाम (३) एक दिन मगध सुन्दरी नामकी वेश्या राजगृहके उपवन में क्रीड़ा करने गई थी। वहां श्री कीर्तिसेठके गलेमें पड़े हुए रत्नोंके हारको देखकर वह मोहित होगई। उसने अपने प्रेमी विद्युत्प्रभ चोरसे उस हारके लानेको कहा। वह उसे सन्तोष देकर उसी समय वहांसे चल दिया और श्री कीर्तिसे ठके महब में पहुंचकर सोते हुए सेठके गलेस हार निकालकर शीघ्रतासे वहांसे चल दिया, परन्तु वह हारके दिव्य तेजको नहीं छुपा सका । उसे भागते हुए सिपाहियोंने देख लिया, वे उसे पकड़नेको दौड़े। वह भागता हुमा श्मशानकी ओर निकल भाया। (५) वारिषेण इस समय श्मशानमें कायोत्सर्ग ध्यान कर रहे थे। विद्युत् चोरने मौका देखकर पीछे मानेवाले सिपाहियोंके पंजेसे छूटने के लिए उस हारको वारिषेणके मागे पटक दिया और वहांसे भाग गया । इसनेमें सिपाही भी वहां भा पहुचे जहां वारिषेण ध्यानमें म्न खडे थे, वे वारिषेणको हारके पास खडा देखक भोंचकसे रह गए। फिर बोले-वाह ! चाल तो खूब खेकी गई ? मानों मैं कुछ जानता ही नहीं। मुझे धर्मात्मा जानकर सिपाही छेड़ जायगे, पर हम तुम्हें कभी नहीं छोड़ेगे। यह कहकर वे वारिषेणको बांधकर श्रेणिकके पास लेगए और राजासे बोले-महाराज ! ये हार चुरा कर लिए जाते थे सो मैंने इन्हें पकड़ लिया। (५) सुनते ही राजा श्रेणिकका चेहरा लाल होगया, उनके मोठ कांपने लगे, उन्होंने गर्जकर कहा-यह पापी ! श्मशान में जाकर
SR No.022685
Book TitlePrachin Jain Itihas Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurajmal Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1939
Total Pages144
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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