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________________ प्राचीन जैन इतिहास। ६१ डलवा दिया। गोवरके सूख जानेपर उसमें मुंहतक पानी भरवा दिया। ज्यों ही वहता २ गोवर कुएँ के मुंहतक माया, गोवरमें लिपटी अंगूठी भी कुएँके मुंहपर भागई। उस अंगूठीको लेकर कुमारने महाराजको दे दी। (१७) कुमारका अद्भुत चातुर्य देखकर महाराज श्रेणिक उनका सम्मान करने लगे और प्रजाके लोग उनकी चतुरताकी प्रशंसा करने लगे। भनेक गुणोंसे भूषित कुमार युवराजके पदपर सुशोभित हो सबको आनंद देते थे। (१८) एक समय राजसभामें तत्वोंकी चर्चा करते करते राजकुमार अभयको अपने पूर्व भवोंका स्मरण होमाया। जिससे उनका हृदय संसारसे विक होमया । उन्होंने पितासे माज्ञा मांगकर भगवान महावीरके समवशरण में जाकर मुनिधर्मकी दीक्षा ग्रहण की मौर चिरकाल तक घोर तप कर घातिया कर्माको नाशकर केवलज्ञान प्राप्त किया। बहुत समय विहार कर उन्होंने मोक्ष सुख पाया। पाठ १७। तपस्वी वारिषेण । (१) वारिषेण राजगृह नगरके राजा श्रेणिक और रानी चेलिनीके छोटे पुत्र थे । भाप बाल्यावस्थासे ही बड़े धार्मिक तथा कर्तव्यशील थे। (२) वे प्रत्येक चतुर्दशीको उपवास करते थे और रात्रिको श्मशान कायोत्सर्ग करते थे।
SR No.022685
Book TitlePrachin Jain Itihas Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurajmal Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1939
Total Pages144
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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