SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 76
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ तीसरा भाग पापी वसंत शीघ्र ही बलभद्र का रूप रखकर घरमें घुस गया। सुशीला भद्राकी दृष्टि नकली बलभद्र पर पड़ी। चाल ढालसे उसे चट मालूम होगया कि यह मेरा पति बलभद्र नहीं है। वह उसे गालियां देकर घरसे बाहिर निकालने लगी। इसी समय कार्यवशात् बलभद्र . भी वहां आया और अपने समान दूसरा बलभद्र देख मापसमें झगड़ा करने लगा। दोनोंकी चाल, ढाल, रूप देखकर पड़ोसियों के होश उड़ गए। भनेक उपाय करने पर भी उनको पता न कग सका कि असली बलभद्र कौन है। अंतमें वे दोनों बलभद्रोंको लेकर राजगृह अभयकुमारके निकट गए। उन्होंने दोनों बलभद्रोंको बुला कर एक कोठेमें बंद कर भद्राको सभामें बुलाकर एक तूम्बी अपने साम्हने रखकर दोनों बलभद्रोंसे कहा कि तुम दोनोंमें से जो कोई कोठेके छिद्रसे न निकल कर इस तूंबीके छिद्रसे निकलेगा,. वह असली बलभद्र समझा जायगा, उसे ही भद्रा मिलेगी। यह सुन कर नकली बलभद्र चट तूंबीके छिद्रसे निकल भद्राका हाथ पकड़ने लगा तब कुमार अभयने कहा-कि यही नकली बलभद्र है और उसे मारपीटकर नगरसे बाहिर भगा दिया और मसली बलभद्रको कोठेसे बाहर निकाल भद्रा देकर अयोध्या जानेकी भाज्ञा दी । इस प्रकार पक्षपात रहित नीतिसे कुमार अभयकी कीर्ति चारों ओर फैल गई। (१६) एक समय महाराज श्रेणिककी अंगूठी कुएँ में गिर गई, उन्होंने शीघ्र ही कुमार अभयको बुलाया और कहा कि अंगूठी सूखे कुएँमें गिर गई है। विना किसी वांस आदिकी सहायताके इसे निकाल दो। आज्ञा पाकर कुमारने कहाँसे गोवर मंगाकर कुएँ में
SR No.022685
Book TitlePrachin Jain Itihas Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurajmal Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1939
Total Pages144
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy