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प्राचीन जैन इतिहास |
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ध्यान करता है और लोगोंको धर्मात्मा बतलाकर धोखा देता है। जाओ इसे इसी समय ले जाकर शूलीपर चढ़ा दो ।
( ६ ) जल्लाद लोग उसी समय वारिषेणको वध्यभूमिमें ले गए । उनमें से एकने तलवार खींचकर बड़े जोरसे वारिषेणकी गर्दन पर मारी । परन्तु उनकी गर्दनपर बिलकुल घाव नहीं हुआ। चांडाळल लोग देखकर दांत अंगुली दबा गए ।
(७) वारिषेणकी यह हालत देखकर सब उसकी जय जयकार करने लगे । देवने प्रसन्न होकर उन पर सुगंधित फूलों की वर्षा की ।
(८) श्रेणिक ने इस अलौकिक घटनाको सुना, वे बहुत पश्चाताप करके पुत्र के पास श्मशान में आए। वारिषेणकी पूण्य मूर्तिको देखते ही उनका दृश्य पुत्रप्रेम से भर आया । उन्होंने अपने अपराधी क्षमा मांगी। वारिषेणका पुण्यप्रभाव देखकर विद्युत् चोरको बड़ा भय हुआ। उसने अपना अपराध स्वीकार करके दयाकी भिक्षा मांगी। राजाने उसे क्षमा कर दिया ।
( ९ ) इस घटना से वारिषेणको वैराग्य होभाया। उन्होंने माता पितासे माज्ञा लेकर दीक्षा धारण की।
(१०) वारिषेण मुनि जहांतहां घूमकर धर्मोपदेश देते हुए पलाशकूट नगर में पहुंचे। वहां राजा श्रेणिकका मंत्रीपुत्र पुष्पडाल रहता था । वह सम्यग्दृष्टि और दानपूजा में तत्पर था ।
(११) वारिषेण मुनि जब पुष्पडाल दरवाजेसे निकले तो उसने उन्हें पडगाहा और भक्ति सहित माहार दिया। जब मुनिमहाराज