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________________ तीसरा भाग (९) राजा रानीने भक्तिप्ते मुनि महाराजको नमस्कार 'किया। उन्होंने दोनोंको समान रूपसे भाशीर्वाद दिया और धर्मका उपदेश दिया। राजा श्रेणिकपर उनकी तपस्या और उपदेशका बड़ा असर पड़ा और उन्हें जैन धर्मपर श्रद्धा होगई । परन्तु बौद्ध भाचार्यों के समझानेपर उन्हें पुन: बौद्ध धर्मसे रुचि हुई। उन्होंने भनेक तरह जैन साधुओं की परीक्षा ली और उनके उन्नत चरित्रको देखकर अंतमें उन्हें जैन धर्मपर पूर्ण श्रद्धा होगई ।। (१०) राजा श्रेणिक पक्के श्रद्धानी होगए, वे भगवान महावीरके प्रधान भक्तोंमें से थे। उन्होंने भगवान के केवलज्ञान होने पर समोशरणमें जाकर धर्मचर्चा संबन्धी अनेक प्रश्न पूछे थे । अंतमें महाराज श्रेणिक प्रधान श्रावक होगए और वे धर्मकी प्रभावनामें मिशदिन तल्लीन रहने लगे। (११) श्रेणिकके कुणिक नामक पुत्र था, जिसके गर्भमें आने पर ही भनेक अशुभ लक्षणोंसे मालूम होगया था कि यह राजाका शत्रु होगा। श्रेणिकने बड़े समारोहके साथ कुणिकको राजभार दे दिया। (१२) पूर्वनन्मके वैर के कारण कुणिक महाराज श्रेणिकको अपना शत्रु समझने लगा और एक दिन उसने बड़ी निर्दयतासे उन्हें काठके पीजरमें बंद कर दिया। उन्हें स्वाने के लिये सूखा सूखा कोदोंका भोजन देने लगा और भोजन के समय कुवचन भी कहने लगा । महाराजा श्रेणिक चुपचाप पीजड़े में पड़े रहते और भात्मस्व. रूपका विचार कर पूर्व पापके फलको भोगते थे ।
SR No.022685
Book TitlePrachin Jain Itihas Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurajmal Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1939
Total Pages144
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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