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________________ भाचीन जैन इतिहास । ५४ (१३) रानी चेकनीने कुणिकको बहुत समझाया और पिताके मोहभावके भनेक उदाहरण दिए। इससे कुणिकको दया भागई, उसे अपने पितापर किए गए अत्याचारोंपर पश्चाताप हुआ। वह उन्हें छुटकारा देने के लिए गया। राजा श्रेणिकने यह जानकर कि यह अब न जाने क्या अत्याचार करेगा, डरकर दीवालसे सिर दे मारा, जिससे उनकी उसी समय मृत्यु होगई । वे प्रथम नरकमें गए । वहांसे निकलकर वे भविष्यमें तीर्थंकर होंगे। पाठ १६। अभयकुमार। (१) अभयकुमार राजा श्रेणिकके पुत्र थे। उनकी माताका नाम नंदश्री था। वे बड़ी चतुर और कलावान थीं। (२) गजा श्रेणिक जिस समय कुमार भवस्थामें भ्रमण कर रहे थे, उस समय वे कांची नगरीमें पहुंचे थे। वहां वे श्रेष्ठी इन्द्रदत्तके साथ उनके घरपर ठहरे। उनकी पुत्री नंदश्रीकी चतुरता पर प्रसन्न होकर उनोंने उसके साथ अपना विवाह किया था और बहुत समय तक वे वहां रहे थे। समयकुमारका जन्म वहीं पर हुआ था । वे बड़े वीर और गुणवान थे। (३) कुछ समय पश्चात् राजा श्रेणिक राजगृहके राजा हुए। वे न्यायपूर्वक प्रजाका पालन करने लगे। (४) बहुत समयसे अपने पिताको न देखकर एक दिव अभयकुमारने मपनी मातासे राजा श्रेणिकका हाल पछा ।
SR No.022685
Book TitlePrachin Jain Itihas Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurajmal Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1939
Total Pages144
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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