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________________ प्राचीन जैन इतिहास। ५२ सुनकर चिलाती भयभीत होकर भागगया। श्रेणिक राजा हुए और बौद्धधर्मका पालन करते हुए राज्य करने लगे। (६) केरक नगरीके राजा मृगांककी पुत्री विलासवतीसे राजा श्रेणिकका विवाह हुआ, जिससे कुणिक ( अजातशत्रु ) नामक पुत्र हुमा। . (७) वैशाली नगरीके राजा चेटककी चेलना नामक गुणवती कन्यासे राजा श्रेणिकका विवाह हुमा । परन्तु जब उसे मालूम हुआ कि वह बौद्धधर्मानुयायी है तो उसे बड़ा दुःख हुआ। राजा श्रेणिकने उसे अपने गुरुभोंकी विनय पूजा करनेकी पूर्ण स्वतंत्रता दे दी। . (८) एक दिन महाराजा श्रेणिक शिकार खेलने गये थे। उन्होंने मार्गमें एक ध्यानमग्न दिगम्बर मुनिको देखा। उन्होंने उनके गले माहुमा सांप डाल दिया और वापिस चले आए। जब रानी चेलनाने यह समाचार सुना तो उसे बड़ा दुःख हुआ । उसकी आंखोंसे मांसू बहने लगे। श्रेणिकने कहा-प्रिये ! तू इस बातका जरा भी रज मत कर । वह मुनि गलेसे सर्प फेंककर कबका चला गया होगा। महाराजके ये वचन सुनकर रानीने कहा-नाथ ! पापका यह कथन गलत है । मेरा विश्वास है कि यदि वे मेरे सच्चे गुरु हैं तो उन्होंने अपने गलेसे सर्प कभी भी न निकाला होगा। इसपर श्रेणिक रानीके साथ उसी समय वहां गए । वहां जाकर उन्होंने मुनिको उसी तरह ध्यानमम देखा । वह मृतक सर्प उनके गलेमें उसी तरह पड़ा था। उसमें चीटियां पड़ गई थीं।
SR No.022685
Book TitlePrachin Jain Itihas Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurajmal Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1939
Total Pages144
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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