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________________ तीसरा/भाग जि उपलवसमावा. (२) एक समय महाराज उपगई एक नए घोड़ेकी परीक्षा कर रहे थे। वह घोड़ा उन्हें एक अनजान जगहपर के मागा और उन्हें एक गहन वनमें जा पटका । भीलोंके राजा यमपालने उन्हें अपने घर स्क्वा । महाराज उपश्रेणिक उसकी सुन्दर कन्यापर मुग्ध होगए। यमपालने इस शर्तपर कि उसका पुत्र ही राज्याधिकारी हो, उपश्रेणिको कन्या विवाह दी । तिलक. वतीक चिलाती पुत्र नामक पुत्र हुमा उसे राज्य अधिकार मिला। (३ ) कुमार श्रेणिकको कुछ दोष गाकर देशनिकालेका दंड मिला। वे राजगृहसे निकलकर नंदिग्राम पहुचे, वहां ब्राह्मणोंने उनको माश्रय नहीं दिया। इसलिए वे मागे चलकर बौद्ध सन्यासियोंके आश्रममें गए और वहां कुछ समयतक रहे । बौद्ध भाचार्यके मीठे वचनों के प्रभावसे कुमार श्रेणिकने बौद्ध धर्म स्वीकार किया और वे बौद्ध धर्मके पक्के अनुयायी होगए। (४) कुछ दिन वहां रहकर वे इन्द्रदत्त सेठके साथ चल दिए । इन्द्रदत्तके नंदश्री नामकी सुन्दरी गुणवान कन्या थी। वह श्रेणिकके गुणोंगर मुग्ध होगई। इन्द्रदत्तने उसका विवाह कुमार श्रेणिक के साथ कर दिया और वे वहीं रहने लगे। वहां उनके अभयकुमार नामक पुत्र हुमा ।। (५) महाराज उपश्रेणिकके देहांत होनेपर चिलाती पुत्र राजा हुआ, वह प्रजापर मनमाने अत्याचार करने लगा जिससे दुःखी होकर प्रजाने कुमार श्रेणिको बुलाया । श्रेणिकका मागमन
SR No.022685
Book TitlePrachin Jain Itihas Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurajmal Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1939
Total Pages144
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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