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________________ १३ तासरा. भागः हुए टेढ़ी-निगाहसे देख रहा था। माता-पिताने उसे अनिष्टकर जानकर कांसोंकी एक संदूक में रखकर उसे यमुनामें बहा दिया। कौशांबी नगरीकी एक शूद्र स्त्री मन्दोदरीको वह संदूक मिली। उसने बालकको निकाल कर उसका कंस नाम रखकर पालन-पोषण किया। बड़ा होनेपर अधिक उपद्रवी होनेके कारण उसने कंसको घरसे निकाल दिया । वह सूरीपुर पहुंचा और वसुदेवका सेवक वनकर रहने लगा। (१०) राजा जरासिंधुका एक शत्रु था जो किसीसे नहीं, जीता जाता था। उसके जीतने के लिए उन्होंने अपना प्राधा राज्य और कन्या देनेकी घोषणा की। वसुदेवने कंसको साथ लेजाकर शत्रुको जीत लिया। इसलिये जरासिंधुने अपना भाषा राज्य और कन्या वसुदेवको देना चाही । परन्तु वसुदेवको वह कन्या पसंद नहीं थी। इसलिये उन्होंने जरासिंधुसे कहा कि शत्रुको कंसने जीता है उसे ही यह इनाम मिलना चाहिये । जरासिंधुने कंसका कुल मादि जानकर उसे अपना आधा राज्य और कन्या दे दी। कंसको जब भपना पिछला हाल मालूम हुआ तो पूर्वभवके वैरके कारण उसे. माता पितापर बड़ा क्रोध आया। वह मथुरापुरी गया और माता पिताको पकड कर उन्हें नगरके दरवाजे पर कैदमें रख दिया। इसके बाद वह वसुदेवको नगरमें लाया और प्रसन्न होकर उसने अपने काका देवसेनकी पुत्री अपनी छोटी बहिन देवकीका उनके साथ विवाह कर दिया। (११) एक समय कंसके यहां मतिमुक्तक नामक मुनि
SR No.022685
Book TitlePrachin Jain Itihas Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurajmal Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1939
Total Pages144
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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