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________________ प्राचीन जैन इतिहास। १४ माए । उन्हें देखकर उसकी स्त्री जीवंद्यसाने देवकीके ऋतु वस्त्र दिखलाकर उनकी हंसी की। तब मुनिराजने कहा-“तू क्या हंसी कर, रही है ? इसी देवकीका पुत्र तेरे पति और पिताका नाश करनेवाला होगा। जीवंद्यशाने कंससे यह बात कही। इन बातोंसे कंस बहुत डरा, क्योंकि वह जानता था कि मुनियोंकी बातें कभी झूठ नहीं होती।" तब उसने राजा वसुदेवसे बड़े प्रेमसे यह याचना की कि मापकी माज्ञानुसार देवकी मेरे ही घरमें प्रसुति करे। बसुदेवने उसकी बात मान ली। (११) दूसरे दिन मतिमुक्तक मुनि माहारके लिये देवकीके यहां आए, तब उन्होंने देवकीसे कहा कि तेरे सात पुत्र होंगे उनमें से छह पुत्र तो दूमरी जगह पाले पोसे जाकर मुक्ति जायेंगे और सातवां पुत्र नारायण होगा । (१२) देवकीने तीन वारमें दो दो चरमशरीरी पुत्र उत्पन्न किये। जब जब ये पुत्र हुए तब उसी समय ज्ञानी इन्द्रकी भाज्ञासे नेगमर्ष नामके देवने सब पुत्र उठाकर भद्रिक नगरकी मलका नामक वैश्य वधूके यहां रख दिये और उसके उसी समय पैदा हुए मरे पुत्रोंको देवकीके आगे डाल दिया। कंसने उन मरे पुत्रों को देखकर सोचा कि इन मरे पुत्रोंसे मेरी क्या हानि होसकती है, परन्तु फिर शंका बनी रहनेके कारण उन मरे हुए बच्चोंको भी शिलापर . पटकवा दिया।
SR No.022685
Book TitlePrachin Jain Itihas Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurajmal Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1939
Total Pages144
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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