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प्राचीन जैन इतिहास ।
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जिसके बैठने से छाया स्थिर होगी वही तेरी कन्याका पति होगा । -इसलिये मगधेशने अपनी श्यामला नामक कन्या वसुदेवको समर्पण की ।
(७) वसुदेवने वहां से चलकर अनेक देशों में भ्रमण किया . और अपनी वीरता और पराक्रमके प्रभावसे अनेक राजाओंको वशमें -किया और उनके द्वारा अनेक सुन्दर कन्याएं ग्रहण कीं ।
( ८ ) एक समय घूमते २ वे अरिष्टनगर में आए। वहांके राजा हिरण्यवर्माकी पुत्री रोहिणीका स्वयंवर होरहा था । वे भी वहां 'एक स्थानपर जाकर खड़े होगए । कन्या रोहिणीने सब राजाओंको -छोड़कर वसुदेवके गलेमें वरमाला डाली । इससे अन्य सभी राजा क्रोधित होगए । महाराज समुद्रविजय भी स्वयंवर में आए थे । उन्होंने वेष बदले वसुदेवको नहीं पहचाना और वे भी सब राजा - ओंके साथ कन्याको हर लेजानेके लिये युद्धको तैयार होगये। उसी समय वसुदेवने अपना नाम खुदा हुआ एक बाण समुद्रविजय के पास भेजा, उसको पढ़कर उन्हें बड़ा आश्चर्य और हर्ष हुआ, उन्होंने सब राजाओं को युद्ध से रोका और अपने सब भाइयोंके साथ वसुदेवसे मिलने गये । वसुदेवने उनको नमस्कार किया और जो भूमिगोचरी तथा विद्याधरोंकी कन्याए उन्होंने विवाही थीं, उन्हें लाकर सुखपूर्वक नगर में रहने लगे ।
( ९ ) नव मास व्यतीत होनेपर रोहिणी रानीके पद्म नामक नौवें बलभद्रका जन्म हुआ ।
(१०) राजा उग्रसेन की रानी पद्मावती के गर्भसे एक बालक पैदा हुआ । जन्म समय ही वह भौंहे चढ़ाये अपने ओठोंको दबाये