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प्राचीन जैन इतिहास । ८९
रङ्ग काला और ताम्र वर्ण था । दांत कोढ़ीके समान थे । गेरू आदिके रङ्गसे शरीर रङ्गते थे । छाल पहिनते थे । वृक्षों के पत्तका छत्र उनपर फिरता था । जब इन भयानक पुरुषोंसे रामचंद्रने जनककी रक्षा की तत्र जनकने रामके गुणोंपर मुग्ध हो सीताका उनके साथ विवाह करना चाहा ।
(६) नारदने जब सुना जनक कि सीताका रामके साथ विवाह करना चाहता है । तब नारद सीताको देखने गये । सीता उस समय अपने निवास गृहमें कांच में मुंह देख रही थी । नारद सीता के पीछेसे आये । कांच में जटाधारी, अपरिचित साधुवेशधारी पुरुषका प्रतिबिम्ब देख सीता डरकर वहांसे भागी । नारद भी महलों में सीता के पीछे जाने लगे । परन्तु द्वारपालोंने रोका और पकड़नेको तैयार हुए। नारद आकाश मार्ग में चले गये ।
(७) अब नारदको बड़ा क्रोध उत्पन्न हुआ और वे सीतासे ईर्षा करने लगे । उन्होंने सीताका एक चित्रपट तैयार किया । और उसे भामण्डल (जो कि सीताका भाई था जिसे देव लेजाकर पृथ्वी पर छोड़ गया था और चन्द्रगति विद्याघर ने अपना पुत्र माना था) को दिखलाया । यद्यपि भामण्डल उसका भाई था । परन्तु उसे यह विदित नहीं था । वह अपनेको चन्द्रगति विद्याघरका पुत्र मानता था । भामण्डल सीता पर आशक्त हुआ । जब यह समाचार चन्द्रगतिको विदित हुए तो उन्होंने चपलवेग विद्याधरको जनकके लाने को भेजा । उस विद्याधरने घोड़ेका रूप धारण कर अपने ऊपर जनकको बिठला चन्द्रगतिके पास आका