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९० ... दूसरा भाग।
शमार्गसे उड़ा लाया। चन्द्रगतिने अपने पुत्रके लिए सीताको मांगा । जनकने कहा कि मैंने रामचन्द्रको देना स्वीकार किया है। इस पर बहुत वादविवाद हुआ। अंतमें यह निश्चय हुआ कि विद्याधरोंके पास जो वजावर्त और सागरावर्त नामक धनुष है उनमें से जो वज्रावर्त धनुषको चटकेगा वही सीताका पति होगा। दोनों धनुष जनकके यहां पहुँचाये गये।
(८) जनकने स्वयंवर किया । इक्ष्वाकुवंशी, नागवंशी, सोमवंशी, उग्रवंशी, हरिवंशी, क्रूरवंशी, राजागण उपस्थित हुए। जनकने क्रमशः वज्रावर्तके पास रानाओंको मेना परन्तु उन धनुषोंकी विकरालता देख सब भयभीत होकर वापिस आ जाते थे । धनुषमेंसे विजलीके समान चारों ओरसे अग्निकी ज्वाला निकलती • थी, माया रचित सर्प फूंकार करते थे। जब किसी राजाका साहस नहीं हुआ तब रामचंद्रने उस धनुषको चढाया । रामचंद्रके देखते ही वह धनुष शान्त हो गया था। उसको चढ़ाते समय बड़ा भयानक शब्द हुआ था। अब सीताने रामके गलेमें वरमाला डाली।
(९) लक्ष्मणने सागरावर्त धनुष चढाया । लक्ष्मणके कृत्य पर मोहित हो विद्याधरोंने अपनी १८ कन्याओंके साथ लक्ष्मणका विवाह किया।
(१०) रामका प्रताप और बल देख भरत मन ही मन विचारने लगे कि हम एक माता-पिताके पुत्र और एक कुलके होते हुए भी इनके समान बल और प्रताप मुझमें नहीं है । सीता अद्भुत सुंदरी और परमपुण्यात्मा है ! भरतकी मुखमुद्रासे