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प्राचीन जैन इतिहास । ८३ ___(१३) इधर हनुमानके पिता पवनंजयने वरुणको जीता
और उसे रावणकी शरणमें लाये । इस पर युद्ध समाप्त होने पर जब पवनञ्जय घर पर आये तब मातापितादिका अभिवादन किया। मित्रको अञ्जनाके महलोंमें भेना । परन्तु वहां जब उसे न देखा तब इधर उधर तलाश कर दोनों मित्र राना महेन्द्रके यहां गये । वहां भी जब न पाई तब वनमें गये । और हाथी व वस्त्राभूषणका त्याग कर वियोगी योगीका रूप धारण किया । और अपना समाचार मित्रके द्वारा पिताके पास भेजा। __(१४) पिता, श्वसुर, मामा आदि कुटुम्बी पवनञ्जयके पास आये । माता पिताने समझाया पर पवनं नय न माने । तब मामा प्रतिसूर्यने जब अञ्जनाके समाचार कहे तब उनका चित्त शान्त हुआ। और सहकुटुम्ब हनुरूह द्वीप गये । वहांसे अन्य सब चले आये । पवनञ्जय, हनुमान, अञ्जना वहीं रहे ।
(१५) इधर वरुणने फिर रावणके विरुद्ध शिर उठाया । . अतः रावणने अपने आधीनस्थ राजाओंका स्मरण फिर किया । तब प्रतिसूर्य और पवनञ्जय, हनुमानको राज्य दे युद्ध में जानेको तैयार हुए । परन्तु हनुमानने वैसा न करने दिया और स्वयं युद्धमें गया । रावणने इसका बहुत सत्कार किया। युद्ध में अद्भुत वीरता दिखाई । शत्रुके पुत्रोंको बन्दी किया। युद्ध समाप्त होनेके बाद रावणने अपनी बहिन चन्द्रनखाकी पुत्री अनङ्गकुसुमाके साथ हनुमानका विवाह किया । और कर्णकुण्डलपुरका राज्य दिया ।
(१६) किहकंपुरके राना नलकी पुत्री हरमालतीके साथ भी हनुमानका विवाह हुआ। यहां एक हजार स्त्रियों के साथ