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________________ प्राचीन जैन इतिहास। ८९ .. (७) अंजनाको गर्म रहा । पबनंजयको माताने अंजना पर व्यभिचारका दोष लगाया । और क्रूर नामक कर्मचारीके साथ अंजनाको उसके पिताके नगरके समीप वनमें छुड़ा दिया । (८) अंजना पिताके यहां गई परन्तु उसकी ऐसी स्थिति देख पिताने भी दुराचारिणी समझ अपने नगरसे निकलवा दी । दूसरे रिश्तेदारोंने भी उसे आश्रय नहीं दिया । तब अपनी सखी वसंतमालाके साथ वनमें चली गई । (९) वन महा-भयंकर था । किसी गुफामें रहनेका विचार कर दोनों एक गुफामें पहुंची । उसमें एक चारण ऋद्विधारी मुनिके दर्शन हुए। दोनोंने वंदना कर अंजनाके कर्मोंका वृत्तांत पूछा । मुनिने सब वृत्तान्त कह धीरन बंबाया और आकाश मार्गसे चले गये । दोनों बाला वहां रहने लगीं । एक रात्रिको वहां सिंह आया । वसन्तमाला स० शस्त्र थी। उसने अञ्जनाके रक्षकका कार्य किया; परन्तु भयभीत दोनों थीं। यह देख अपनी स्त्रीके अनुरोबसे उस गुफाके रक्षक एक गन्धर्व देवने अष्टापदका रूप धारण कर सिंहको भगाया और इन दोनोंका भय दूर किया । (१०) उस गुफामें दोनों बालाएँ मुनिसुव्रतनाथकी प्रतिमा विराजमानकर उसको भक्ति करने लगीं। उसी गुफामें अञ्जनाकी प्रसूति हुई । बालकके जन्मसे अँधेरी गुफा प्रकाशित हो गई । बालक बड़ा शुभ लक्षणवाला था । उसे देखनेसे अञ्जनाको परम सन्तोष हुआ । अञ्जनाके पुत्रका जन्म चैत्र मुदी ८ (अष्टमी) को अर्द्धरात्रिके समय हुआ।
SR No.022684
Book TitlePrachin Jain Itihas Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurajmal Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1923
Total Pages182
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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