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दूसरा भाग। अपने पतिका चित्र बनाते समय भी वह लेखनीको स्थिर नहीं रख सकती थी। ___(५) कितने ही वर्षों के बाद एक वार रावणने वरुणसे युद्ध ठान रक्खा था । और वरुणके पुत्रने खर-दूषणको पकड़ लिया था। इस कारण रावणने अपने कई आधीन रानाओंको सहायतार्थ बुलाया था । अतः प्रल्हाद जानेको उद्यत हुए । परन्तु पवनंजयने पितासे कहा कि मेरे होते हुए आपको जाना उचित नहीं। विशेष अनुरोधसे पिताकी आज्ञा प्राप्त कर पवनंजय रावणकी सहायतार्थ चले । उस समय पतिके दर्शनार्थ अंजना द्वार पर आई। इस पर पवनंजय बहुत क्रुद्ध हुआ । पवनंनय सेनाके सहित चले
और मानसरोवर पर डेरा डाला । वहां चकवीको चकवाके वियो. गसे दुःखी देख उन्हें अंजनाके दुःखका भान हुआ और अब वे अंजनासे मिलनेके लिए विकल होने लगे। परन्तु पितासे विदा हो कर आये थे इससे किस प्रकार घर लौटना, इस पर विचार करने लगे। भित्र प्रहस्तसे सम्मति ली । अंतमें बहाना करके जानेका निश्चय किया।
(६) तदनुसार मुद्गर नामक सेनापतिको सेनाका भार कर दोनों मित्र चेत्यालयोंकी वंदनाके बहाने अपने घर आये । वहां अंजना और पवनंजयका संयोग हुआ। प्रातःक ल जब पवनंजय जाने लगे तब अंजनाने गर्भकी आशंका प्रगट का और माता पितासे अपने आनेके समाचारोंको कहनेके लिये पवनंजयमे अनुरोध किया ! पर पवनंजय वैसा करना उचित न समझ सरना कंकण और मुद्रिका अंजनाको दे शीघ्र आनेका वचन दे कर चले गये।