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________________ ७९ प्राचीन जैन इतिहास | सरोवर के तट पर पवनंजय और अञ्जनाके विवाहका मुहूर्त दिया । (३) पवनञ्जय ने जब अपने विवाहका समाचार सुना तब उन्हें अञ्जनाको देखने की प्रबल इच्छा हुई । अपनी इच्छा को उन्होंने प्रहस्त नामक मित्रसे प्रगट की । अञ्जना बड़ी विदुषी, रूपवान् और चित्रकला - प्रवीण नारी थी । पवनञ्जय और प्रहस्त विमानोंद्वारा अंजनाको देखनेके लिये गये ! अंजना उस समय अपनी दासियों के साथ महलके झरोखों में बैठी हुई थी। इसके रूपको देखकर पवनंजय सन्तुष्ट हुआ । उस समय दासी वसंततिलकाने पवनंजय के साथ पाणिग्रहण होनेके कारण अंजनाके भाग्यको सराहा । परन्तु दूसरी दासीको पवनंजयकी प्रशंसा अच्छी नहीं लगी ! उसने कहा कि पवनंजय अयोग्य वर है । यदि विद्युत्प्रभकुमारसे सम्बन्ध होता तो उचित था । पवनंजयको दासीके इन वचनों से क्रोध उत्पन्न हो आया । और वह दासी तथा अंजनाको मारनेका विचार करने लगा। परन्तु प्रहस्त मित्रके अनुरोधसे उसने अपने क्रोधका संवरण किया और डेरे पर आकर अपने नगरको जाने के लिये उद्यत हुआ तब पिता और श्वसुरने बहुत रोका । अंत में - यह निश्चय कर कि विवाह करके अंजना को छोड़ दूगा वहीं ठहर गया । (४) मानसरोवर पर विवाह हुआ । पवनञ्जय अपने निश्चयके अनुसार अंजना से सम्बंध नहीं रखता था । अंजना पतिकी अप्रसन्नता से सदा दुखी रहती थी। वह महा सती और प्रतिव्रता थी । इस दुःखके कारण यहां तक शक्ति हीन हो गई थी कि
SR No.022684
Book TitlePrachin Jain Itihas Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurajmal Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1923
Total Pages182
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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