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________________ दूसरा भाग। अधिक वैराग्यमय था और न गृहस्थावस्थाका ही प्रेमी था । महाशीलवान् था । कौतूहली था । कलहप्रिय था । गानेका बहुत बडा शौकीन था। इसका राजा महाराजाओं पर बहुत प्रभाव पड़ता था। पुरुष स्त्रियोंमें बहुत इप्सका सन्मान था । सदा आकाशमार्गमें भ्रमण किया करता था । लोग इसे देवर्षि कहकर पुकारते थे । इसका दूसरा नाम नारद था। इनकी गणना १६३ महा पुरुषोंमें है । ये मोक्षगामी हैं । पर इस पर्यायसे नरक गये हैं क्योंकि यह कलहप्रिय थे । स्थान २ पर इनके सम्बन्धमें नो वर्णन आया है उससे पाठक इनके स्वभावका परिचय पाजावेंगे। पाठ २५. हनुमान । (१; विनयाई पर्वतको दक्षिण श्रेणी में आदित्यपुर नामक नगर था। वहांके राजाका नाम प्रह्लाद था । उनकी राणी केतुमती थी । राना प्रह्लाद जैनी और राणी केतुमती नास्तिक थो। इनके पुत्रका नाम पवनञ्जय था। पवनञ्जयका दूसरा नाम वायुकुमार भी था। (२) पवनञ्जयके साथ महेन्द्रपुरके राजा महेन्द्र ने अपनी पुत्री अञ्जनीका विवाह करनेका विचार किया । राजा महेन्द्र कैलाश पर्वत पर आये । प्रह्लाद भी उन्हें वहां आ मिले। तक राजा महेन्द्रने अपने विचार प्रगट किये । राना प्रह्लादने उनके कथनको स्वीकार किया । ज्योतिषियोंने तीन दिनके बाद ही मान
SR No.022684
Book TitlePrachin Jain Itihas Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurajmal Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1923
Total Pages182
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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