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प्राचीन जैन इतिहास |
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पाठ २४.
नारद ( १ )
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एक बह्मरुचि नामक ब्राह्मण था । उसकी स्त्रीका नाम कुर्मी था । वह ब्राह्मण तापसी हो गया । और वन में जाकर कन्द - फल फलादिसे उदर निर्वाह करता हुआ रहने लगा । उसकी स्त्री उसके साथ रहती थी । वहां उसे गर्म रहा । एक समय कुछ मुनि वहाँ आये । तापसी ब्रह्मरुचि अपनी स्त्रीके साथ उनके पास गया । स्त्रीको गर्भिणी देख मुख्य मुनिराजने तापसीसे कहा कि भाई ! जब तूने संसारको छोड़ वनमें रहना स्वीकार किया है फिर कामादिका सेवन क्यों करता है ? मुनिके उपदेश से उसने मुनिव्रत स्वीकार किया । स्त्रीने भी श्रावकके व्रत लिये और वनमें ही रहने लगी । दशवें मास पुत्र प्रसव किया । पुत्र लक्षणों मे धर्मात्मा और पुण्यात्मा प्रतीत होता था । कुर्मीने विचार किया कि जीवोंका इष्टानिष्ट कर्माधीन है। माताकी गोंद में रहते भी पुत्र मरणको प्राप्त हो जाया करते हैं तो यदि मैं इस पत्र के साथ भी रहूं तो भी कुछ लाभ नहीं । जो कुछ इसके भाग्यमें होना होगा वह होगा यह विचार कर पुत्रको वनमें छोड़ अलोकनगर में आकर इन्द्रमालिनी नामक आर्यिका से दीक्षा ली । इधर उस पुत्रको ज्रभ्भ नामक देव उठा कर ले गया । और उसका लालन पालन कर विद्या पढ़ाई । वह बड़ा विद्वान् हुआ । उसे युवा अवस्था में ही आकाशगामिनी विद्या सिद्ध हुई । और उसने क्षुल्लके व्रत धारण किये। परन्तु उसका स्वभाव न तो