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दूसरा भाग।
हुआ । उसने पिताके वचनका तिरस्कार करते हुए कहा कि संग्राममें प्राण देना उचित है परन्तु किसीके आगे नम्र होना उचित नहीं । यद्यपि हम दोनों विद्याधर होनेके नाते बराबर हैं परन्तु विद्या, बुद्धि और बलमें हम रावणसे अधिक हैं । ऐसा कह कर आयुधशालामें ना युद्धी तैयारी करने लगा। रावण और इन्द्रमें घोर युद्ध हुआ। अंतमें इन्द्रको रावणने पकडा । तब इन्द्र के पिताने रावणसे मिल कर इन्द्रको छुड़ाया। इस पर इन्द्र बहु उदास हुआ और उसे वैराग्य उत्पन्न हो गया । इतनेमें वहां चारण मुनि आये । उनसे इन्द्रने दीक्षा धारण की । (ञ) इस प्रकार इन्द्रको जीत कर रावण चैत्यालयोंकी वंदनाके लिये गया । मार्ग में अनंतवीर्य केवलोकी गंधकुटी देख वहां केवलो भगवान्के दर्शनार्थ रावण गया । कुम्भकर्ण, विभीषण आदि भी साथमें थे। कुम्भकर्णने धर्मका विशेष व्याख्यान सुननेकी निज्ञामा प्रगट की । रावणादिने उपदेश सुना तब धर्मरथ मुनिने रावणसे कुछ प्रतिज्ञा लेनेके लिये कहा । तब रावणने यह प्रतिज्ञा ली कि जब तक कोई पर स्त्री मुझे न चाहेगी, मैं उसके साथ संभोग नहीं करूंगा। कुम्भकर्णने जिनेन्द्रका अभिषेक प्रति दिन करने तथा मुनियोंके आहारका समय टल जाने पर आहार करनेकी प्रतिज्ञा ली । विभीषण और हनुमानने श्रावकके व्रत धारण किये। .. ..(२३) रावणके १८००० रानियां थीं । रावण प्रतिनारायण थे । और इनका जन्म भगवान् मुनिसुव्रतनाथको मोक्ष हो जानेके बाद हुआ था।