SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 80
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्राचीन जैन इतिहास | ७१ जलयन्त्र के द्वारा जल बांध कर अपनी रानियों सहित क्रीडा कर रहा था । प्रातःकाल जब रावण जिनेन्द्रकी पूजा करने लगा तब सहस्ररस्मिके जलयंत्रोंसे बंधा हुआ जल छूट गया और जलप्रवाह बड़े वेग से रावणके स्थान पर आया । रावणने जिनेन्द्रकी प्रतिमाको मस्तक पर रख कर सहस्र रम्मिको पकडने की आज्ञा दी और आप फिर जिनेन्द्रकी पूजा करनेमें लग गया । आज्ञा पाकर कई राजा, सेना सहित सहस्ररस्मिको पकड़ने गये । पहिले ramat सेना आकाश मार्ग से मायामयी शस्त्रास्त्रोंके द्वारा युद्ध करती थी । परन्तु देववाणीके द्वारा देवोंने इसे अन्याय युद्ध कहा क्योंकि सहस्ररस्मि भूमिगोचरी था और भूमि परसे युद्ध कर रहा था । तत्र रावणकी सेना लज्जित हो पृथ्वी पर आई; दोनोंमें घोर युद्ध हुआ । सहस्ररस्मिकी सेना पहिले हटी परन्तु फिर सहस्ररस्मिके युद्ध के लिये स्वयं उद्यत होने पर उसने रावणकी सेनाको हटाया | रावणकी सेना करीब १ योजन पीछे हट गई । यह संवाद सुन रावण स्वयं आया । और युद्ध कर सहस्रर स्मिको जीता पकड़ा। उस समय सन्ध्या हो गई थी । रात्रि में सहस्ररस्मि कैद रहा । सहस्ररस्मिके पिता शतबाहुने- जिन्होंने मुनि दीक्षा ले ली थी - जब सहस्ररस्मिके कैद होनेका वृत्तांत सुना तब स्वयं रावण के पास आये । रावणने मुनि शतबाहुकी बहुत अभ्यर्थना की । शतबाहुने सहस्ररम्मिको छोड़नेके लिये कहा । रावणने सहखरस्मिको छोड़ कर उनसे कहा कि मैं आपकी सहायता से इन्द्रको जीतूंगा और फिर तुम्हारा मेरी पत्नी मंदोदरीकी छोटी बहिन के
SR No.022684
Book TitlePrachin Jain Itihas Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurajmal Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1923
Total Pages182
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy