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________________ ७० दूमरा भाग। स्वामी स्वदूरषणने-जो रावणका बहिनोई था-रावणको रत्नोंका अर्घ दिया और आधीनता स्वीकार कर अपनी सेना रावणकी सेवामें उपस्थित की। खरदूषणको रावणने अपने ही समान सेनापति बनाया । खरदूषणकी सेनामें हिडम्ब, हैहिडंब, विकट, स्त्रिजट, हय, माकोट, सुनट, टंक, किहिकन्धाधिपति, सुग्रीव, त्रिपुर, मलय, हेमपाल, कोल, वसुन्दर, आदि अनेक राजा थे। रावणकी सेना एक हजार अक्षौहिणीसे भी कुछ अधिक हो गई थी। (ग) खरदूषण पाताललंकाके चन्द्रोदर नामक विद्याधरके मर जाने पर वहांका अधिकारी बन गया था। और उसकी स्त्री अनुराधाको निकाल दिया था। अनुराधा उस समय गर्भिणी थी । अतएव बड़े कष्टोंसे वह बन २ भटकती फिरी और इसी प्रकारकी दुःखमय स्थितिमें उसने प्रसुति की। उसके पुत्र उत्पन्न हुआ । पुत्रका नाम विराधित रक्खा गया। जब यह बड़ा हुआ तब अपने शत्रु खरदूषणसे बदला लेने का प्रयत्न करने लगा। परन्तु इसका कोई सहायक नहीं था। जहां जाता वहां इसका कोई सन्मान नहीं करता। लाचार निनेन्द्रके मंदिरोंकी वंदना करना तथा तटस्थ होकर आकाश मार्गसे पृथ्वीके संग्रामादिको देख कर ही मनोविनोद करना इसने उचित समझा। . (घ) पाताल लंकासे चल कर रावण विंध्याचल पर्वत परसे होता हुआ नर्मदाके तट पर आया । और वहां डेरा दिया । इसके डेरेसे कुछ ऊंचास पर माहिस्मती नगरीका राजा सहस्ररस्मि
SR No.022684
Book TitlePrachin Jain Itihas Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurajmal Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1923
Total Pages182
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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