SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 78
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्राचीन जैन इतिहास। ६९ बस निकाल कर उससे वीणा बजाई । इस घटनाके पूर्व समय तक रावण " रावण न कहला कर दशानन कहलाता था । परन्तु इस घटनामें पर्वतके भारसे जब उसे रुदन करना पड़ा तबसे वह "रावण " कहलाया। वाली मुनिने यद्यपि जिन मंदिर कैलाश पर्वत तथा जीवोंकी रक्षाके लिये काय ऋद्धि द्वारा रावणसे कैलाश पर्वतकी रक्षा की थी तो भी यह कार्य मुनि धर्मके विरुद्ध था। इसलिये अपने गुरुसे आपने प्रायश्चित्त लिया और घोर तप कर केवल ज्ञान प्राप्त किया । (२१) इस समय रावणने जो स्तुति गान किया था उससे प्रसन्न होकर धरणेन्द्र वहां आया और रावणसे कहा कि स्तुति गानसे मैं बहुत प्रसन्न हुआ ई इस लिये वर मांगो । रावणने कहा कि जिनेन्द्र-भक्तिसे अधिक और कोई वस्तु नहीं जो मैं माँगू । धरणेद्रने कहा कि यह आपका कहना ठीक है, जिनेन्द्र-भक्तिसे ही मनुष्य बड़े २ सांसारिक पद और परम्परा मोक्ष प्राप्त कर सकता है, तो भी हमारा तुम्हारा मिलन निरर्थक न जावे; इसलिये अमोघ विनया नामक शक्ति मैं तुम्हें देता हूं। तुम इसे ग्रहण करो। रावणने धरणेद्रके द्वारा दी हुई शक्ति ग्रहण की । और करीब १ मास तक कैलाश पर्वत पर रहा। (२२) (क) कैलाशसे आकर रावण दिगविनयके लिये 'निकला । संपूर्ण राक्षसवंशी और वानरवंशी विद्याधरोंने रावणकी आधीनता स्वीकार की। (ख) फिर रावण रथनपुरके स्वामी इन्द्रको विनय करने चला । पाताल लंकामें जाकर डेरा दिया। वहांके
SR No.022684
Book TitlePrachin Jain Itihas Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurajmal Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1923
Total Pages182
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy